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PANASODE
मूलाराधना
IAS
आश्व
एसे साग, चटगी बगैरह पदार्थ को विकृति कहते हैं. इनसे रहित रसहीन भोजनको निर्विकृति भोजन कहते हैं, आचाम्ल भोजन और निर्विकृति भोजन कर क्षपक दो वर्ष विताता है, तदनंतर आचम्ल भोजन कर एक वर्ष व्यतीत करता है. अब अतिम एक वर्ष प्रथम छामासनका यह सध्यम नपोद्वारा शरीरको क्षीण करता है. और अन्तक छहो मासमें उत्कृष्ट तपास शरीरको कुश करना है. इस तरह अपने आयुके अन्तिम बारा वर्षांमें यह मल्लखना करता है,
ब्यावर्णितेनैव कमेण बारात निरवियतं त्या-
भत्त खत्तं कालं धातुं च पडुच्च तह तब कुज्जा ।। बादो पित्तो सिंभो व जहा खोभं ण उवयंति ॥ २५५ ।। द्रव्यं क्षेत्र सुधीः कालं धातु ज्ञात्वा तपस्यति ।
तथा क्षुभ्यति नो जातु वातपित्तकफा यथा ॥ २५६ ।। विजयोदया-भतं आहारं शाकाहुल, रसबहुलं, कुल्माषप्राय, निष्पायचणकादिमिधं, शाकव्यंजनादिरहितं वा। खतं अनूपजांगलसाधारणविकल्प। कालं धमशीतसाधारणभेदं । धातुमात्मनः शरीरप्रकृति च | पहुच आश्रित्य । तह तथा । तब कुजा तपः कुर्याजहा सोमं पा उश्यति । यथा क्षोभ नोपयोति । वादो पिप्सो सिमो चा वातपित्तलोमनिकं ।
यथोक्तेनैव क्रमेण चरितव्यमिति नियमो नाम्नीति ब्रवीति
मूलारा-आहार शाकरसभूयिष्ठं कुल्माषकलायचणक निप्पावादिमिश्र शाकञ्यंजनादिरहितं वा । खतं | अनूपजांगलसाधारणविकल्पं । कालं शीतधर्मदृष्टिभेदं । पादुं स्वशरीरप्रकृति । पडुन आश्रित्य खोभं प्रकोपं ।
ऊपर दो गाथाओंमें जो आचारक्रम बताया है उसके मुआफिक ही आचरण करना चाहिए ऐसा नियम नहीं है. अन्य भी प्रकार है या आगेकी गाथामें लिखते है....
अर्थ- आहारके अनेक प्रकार है जैसे शाक जिसमें जादा है ऐसा एक आहार, घी, दूध, वगैरह जिसमें अधिक है ऐसा आहार, कुलथ्या नाम का धान्य जिसमें जादा है ऐसा आहार, निष्पाव, चना बगैरह से रहित केवल भात रोटी बगरह आहारके अनेक प्रकार हैं. जैसे आहारके अनेक प्रकार हैं वैसे क्षेत्र भी अनेक प्रकार का है.
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