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________________ आवासः मृताराधना प्रतिमायोग धारण करता है. ये सात भिक्षु प्रतिमायें है. पुनः सात सात दिनोंमें पूर्व आहररकी अपेक्षास शतगुणित उत्कृष्ट और दुलभ ऐसे भिन्न भिन्न आहार तीन दफे लेनेकी प्रतिज्ञा करता है. आहारकी प्राप्ति होने पर नीन दोन और एक ग्रास लेता है. ये तीन । मिक्ष प्रतिमायें है. तदनंतर रात्रि और दिनभर प्रतिमायोगसे खडा रहकर अनंतर प्रतिमायोगसे ध्यानस्थ रहता है, ये दो भिक्षु प्रतिमायें है. प्रथम अवधिज्ञान और मनःपर्ययज्ञानकी प्राप्ति होती है. अनंतर सूर्योदय होनेपर यह क्षपक केवलज्ञानको प्राप्त कर लेता है. इस रीतीसे चारा भिक्षुप्रतिमायें होती है, शरीरसल्लेखनाहेतुषु उपन्यस्तेषु के उत्कृश हत्यत्राह सल्लेहणा सरीरे तबोगुणविधी अणेगहा भणिवा ॥ आयलिलं मड़सी तभइ, कस्मयं निति ।। २५० ।। देहसल्लेखनाहेतुबहुधा वणितं तपः॥ घदन्ति परमानाम्लमाहता यत्र योगिनः ।। २५० ।। विजयोदया-सङ्गणा सरीरे शरीरसल्लेखनानिमित्तं शरीरे सलखना इन्युध्यते । तमोगुण तपःसंशितो गुण विकल्पः। अगहा मणिहा अनेकधा निरूपितः अतीतसूत्रः । तन्थ तत्र | महेसी महर्षयः । आययितु आत्राम्लाशनार च । उक्तस्रग उस्कृयमिति । ति घुवन्ति ।। शरीरसल्लेखनाहेतुपपन्योपु क रत्कृष्ट्र इत्याह-- __ भूलारा-सरलेला मायनानिमित्त कार्य कारणोपचारात् । राघोगुणविधी तपःसंज्ञितो गुणविकल्पः । भणिदो निरूपितोऽनीतसूत्रैः । आर्याबलं वश्वमाणलक्षणमाचाम्लं । महेसी महर्पकः । वेति त्रुधने । शरीरसल्लेरखनाक हेतु ऊपर कहे हैं उनमेसे कौनसे हेतु उत्कृष्ट है इसका विवरण अर्थ-शरीरसहलेखनाका निमित्त जो तप उसके अनेक विकल्प पूर्वोक्त गाथाआमें कहें हैं, उन विकल्पों में | आचाम्लभोजन करना यह उत्कृष्ट विकल्प है ऐसा महर्षिगण कहते हैं. १७२
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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