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________________ SISTAN 'मलाराधना बाधासा रसांश्च सुखसाधनभूतांस्त्यजता सुखे रागस्त्यको भवति । सुवादिवेदनोपनिपाते यसंफ्लेषात् दुःखे म च देषोऽस्या स्तीति । बाहिरतंवण होदि हु इत्यनेन पंचसूत्रीनिर्दिष्टानां प्रत्येकं संबंधः॥ मूलारा-णिजओ प्रतिदिनमातो रसबदाहारसेवापरस्य बहुमोजिनश्च निवासे निरुपवे सुस्वस्पर्शतल्पे निद्रा महती जायते | यवशाग्निश्चतन इष भवति, अशुभपरिणामप्रवाहे र पतति । न च रत्नत्रयाय कल्पते । तस्या जयोऽनशनादिना क्रियते । दृढज्याणदा तपमा भावितदुःखो हि परीपहनिपातेऽपि न ध्यानादू भ्रश्यति । विशिष्टा मुक्तिरनशनादावुद्यतन दुस्त्यजस्यापि वेदस्य त्यजनात् । दप्पणिग्धादो असंयमकरणे यो दर्पस्तस्य विनाशो । सज्झाय जोगणिविग्वदा । पाच मिनधविनाभारः बारा भो नयोजनासानापि शक्त्युपघातेन, रसबदाहारभोजनजन्यविदाहशादितस्ततः परावर्तनेन, जनसंकुले तच:प्रवणतत्संभाषणकरणाभ्यां च स्वाध्यायभंगसंभषात् । सुइदुःखसममा सुखसाधनाशनरसादिन्यजनात्सुखे रागानुदयात् क्षुदादिवेदनोदयेऽपि असलिशाहुःख च द्वेषानुयात् । अर्थ-याध तपसे अनि निद्राको जीत लेते हैं. जो प्रतिदिन भोजन करता है, रसयुक्त आहारका सेवन करने में तत्पर रहता है और बहुत भोजन करता है, जिसको वातरहित, मृदुस्पर्श युक्त, और निरुपद्रव ऐसे स्थानमें सोनेकी फिकिर होती है, ऐसा स्थान मिलनेपर दीर्घ कालतक खुरटे लेता है. प्रेतके समान निश्चल सो जाता है. अशुभ परिणाम भी उसके मनमें हुआ करते है और वह रत्नत्रयमें प्रवृत्त होता नहीं इस तपस ये सर्व दोष नए होकर निद्राजय नामका गुण प्राप्त होता है.. चपसे ध्यानमें दृढता आती है. दुःख सहन करनेका अभ्यास होनेसे मुनि दुःखोंके प्रसंग आने पर भी ध्यानसे भ्रष्ट नहीं होते हैं. इमेशा तपका अभ्यास करनेसे वह सामर्थ्य मुनिमें आजाता है जिसस वे भूख, सुपा बगैरह परीषद माप्त होने पर भी दुःखोंकी परवाह नहीं करते हैं. तप करनेसे मुनिओंको विमुक्ति अर्थात् विशिष्ट त्याग नामका गुण मास होता है. अनशनादिक तपश्चरणमें तत्पर मुनिओंसे शरीरका त्याग किया जाता है यह शरीरका त्याग करना ही बडा कठिन है. तपसे दर्पनाश नामक गुग प्राप्त होता है. असंयमको उत्पन्न करनेवाला मद इस उपसे नष्ट होता है. अनशनादि तपसे वाचना, अनुप्रेक्षा, आम्नाय और धर्मोपदेश इन स्वाध्यायके भेदोका संबंध आता है और उसमें विघ्न उपस्थित होते नहीं है. आहार के लिये भ्रमण करने वाले मुनिको स्वाध्याय करना शक्य नहीं होता है, बहुत भोजन करनेपर वह ऊपर मुख कर सोवेगा. बह बैठ भी नहीं सकेगा. हमेशा रसयुक्त आहार Tawarestobongs
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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