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________________ मूलाराधना आभासा है उसका तपसे प्रशमन होता है अतः आत्माका दर्प अर्थात् मद नामका दोष नष्ट होता है. इस तपसे आहारकी इच्छा का त्याग करनेका अभ्यास वृद्धिंगत होता है. इस लिए आहारनिरासता नामक गुण प्राप्त होता है. और सर्व कालमें यह गुण आत्मा अपने में धारण करने में समर्थ होता है. तपसे आहार की लंपटता नष्ट होती है. जो आहारमं लपट है वह व्यक्ति आहारकी प्राप्ति होने पर उसको छोडना नहीं चाहता है. तपसे लाभ और अलाभमें समता प्राप्त होती है. दपस्त्रीको आहार मिलनेपर हर्ष होता नहीं और न मिलने पर वह कुपित भी होता नहीं. जो तपस्वी प्राप्त हुआ आहार स्वयं छोड़ देता है वह यदि उसको कोई आहार न दे तो क्यों खिम होगा ! तपसे मुनि ब्रह्मचर्यको सहन करते हैं. रसयुक्त आहारका त्याग करनेसे नवीन वीर्यका संचय नहीं होता है. और पुराना शुक्रसंचय नष्ट होता है. तब स्लीपर अनुरागभाव नहीं होता है. जिनका शुक्र नष्ट होगया है ऐसे मनुप्य स्त्रीसे पराङ्मुख होते हैं यह वस्तुस्थिति प्रसिद्ध है. णिद्दाजओ य दृढझाणदा विमुत्ती य दप्पणिग्यादो ॥ सज्झायजोगणिविग्घदा य सुदुक्खसमदा य ॥ २४१ ॥ निद्रागृद्धिमदस्नेहलोभमोहपराजयः॥ ध्यानस्वाध्याययोद्धिः सुखदुःखसमानता ॥ २४२ ।। विजयोदया--णिहाजओ य निदाजयश्च । प्रतिदिनमश्नतः रसवदाहारसेवापरस्य बहुभोजिनब निषाले सुख. स्पर्श निरुपद्वे च देशे शयानस्य निद्रा मद्दती जायते, यया परवशो निश्चेतन इव भवस्याभपरिणामप्रवाहे च पतति, न च रत्नत्रयेण घटयति, तस्या जयो 1 वढझाणदा ध्यानता च दुःखोपनिपाताचलति ध्यानादभावितदुःखो यतिः । इत. तपोभावनस्सु क्षुदाविपरीपदोपनिपातेऽपि सहते। विमुत्ती य विमुक्तिर्विशिष्टत्यामः मनशनादावुधतेन शरीरमेव त्य भवति सदेव दुस्स्यजं । दपपणिग्वादो असंयमकरणो यो दर्पस्तस्य निर्धातच तो भवति । सज्झायजोगणिबिग्धदा ययाचनानुपेक्षाम्नायधर्मोपदेशैयोंगः संबंधो यस्तस्य विनामावश्च । माहारार्थ भ्रमतः कथं स्वाध्यायः कियते ? पहभोजनव उत्सानः स्वपिति मासितुमप्यसमर्थः । रसबदाहारभोजीमाहारोमणा दह्यमान इतस्ततः परावर्तते । अविविकाया वसती वर्तमानः परेषां बचः शृण्वस्तः सह संभाषणं कुर्वधाधीते । विविक्तवेशस्थायी पुनर्निव्याकुलः स्वाध्याये घटते । सुहदुःखसमदा य सुखेन इष्पति दुःखेन तुष्यति इति रागदपायंतरेण सुखदुःखाननुभवः सुखदुम्बासमता । अराने ReactADARASTARATAASANTASTARAMATARRARAS 21 *ABARBIRATRA
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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