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________________ बलाराधना ४६० भावनाोभः । इत्थं कपायोदयनिभित्तवस्तुत्यागान्न कमायाणा गवसर इति । अगादरी औदासीन्यं । वतश्च तदादरनिमित्त कर्माचनिरोधः स्यादिति भावः । अशनं हि त्यजता ततरपवादस्त्यक्तो भवति ।। अर्थ - तपका आचरण करनेसे दुःखभावनाका अभ्यास होता है. अर्थात् संक्लेश परिणामोंके बिना दुःख सहन करनेसे कमोंकी निर्जरा होती है. क्रमसे होनेवाली यह कर्मनिर्जरा सपूर्ण कर्मका नाशरूप जो मोक्ष उसका उपाय होती है. अतः दुःखभावना परंपरा मोक्षप्राप्तिका कारण होनेसे उपयोगी है ऐसा साधुगण समझें. दुःखभावनाका वारंवार चिन्तन होनेसे साधुका चित्त धर्मध्यान में निवल होता है. बात में निम हुवे मुनिकी देह, श्रीरादि पदार्थ और सुख इन तीनोंमें आसक्ति नहीं रहेगी. यह आसक्ति रत्नत्रय में विघ्न करनेवाली होती है. अनशनादिक बाप सर्व क्रोधादि कषायों का निग्रह करता है. शंका- तपमें कषायनिग्रह करनेका सामर्थ्य कैसा ? क्षमा, मार्दव, आर्जव और संतोष इन भावनासे काय निग्रह होता है क्योंकि ये कपायोंके प्रतिपक्षी हैं. चातप प्रतिपक्षी नहीं है ? इस शंकाका उत्तर " इसका अभिप्राय यह है कि, अन्नादि पदार्थ न मिलनेसे अथवा स्वल्प मिलनेसे, किंवा अप्रिय मिलनेसे, क्रोध काय उत्पन्न होता है. यदि अनादि पदार्थ यथेष्ट मिले और वे रसयुक्त भी हो तो मेरेको ही ऐसे अच्छे मिष्ट पदार्थ मिलते हैं इतरोंको नहीं मिलते हैं ऐसा विचार मन में आनेसे मानकवाय उत्पन्न होता है. मेरा भिक्षा लेनेका स्थान अन्य साधुओं को ज्ञात नहीं होगा इस रीतीसे मैं वहां प्रवेश करूं ऐसा विचार मन में उत्पन्न होना यह मायाकपाय है, विपुल अन्न और उसके इसमें आसक्ति होना लोभकषाय है. वसतिका विषयमें भी क्रोधादि चारों कषाय उत्पन्न होते हैं, जैसे श्राचकने वसतिका नहीं देनेपर कोय उत्पन्न होता है. उसके मिलनेपर मानकषाय उत्पन्न होता है, जब दुसरे साधु आवेगे तो यह अवकाश नहीं है ऐसा वचनप्रयोग करता है जिससे मायाकare प्रगट होता है. इस काका मैं मालिक हूं यह संकल्प उत्पन्न होना लोभकषाय है. इस प्रकार कषायको उत्पन्न करनेवाली चीजोंका त्याग करनेसे कपायोंको मनमें स्थान नहीं मिलता है. अतः बाह्यतपसं कायनिग्रह होता है ऐसा आचार्यने कहा हूं. बाह्य तपसे पंचेंद्रिय के विषयोंमें अनादर होता है. अर्थात् उनमें उदासीनता होती है. इस उदासीनता से तप में आदर उत्पन्न होकर कर्मोंका संवर होता है. आहारके पदार्थ शुक्लादिरूप धारक, मृदुस्पर्शयुक्त, सुगंध आश्वासः ३ ४६०
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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