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लागवना
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आश्वासः
लिए योग्य है. जो वसतिका अच्छी तरहसे देख भाल न करके लीयी पोती है वह योग्य नहीं है. जो वसतिका जीवोत्पत्ति से रहित है वह योग्य है. जिससे कोई उपद्रव नहीं है अथवा जिसमें शय्या नहीं है. ऐसी वसतिकामें अन्दर बाहर जो मुनि रहता है बह विविक्त शय्यासन तपका धारक समझना चाहिये.
अथ का विविक्ता वसतिरित्यवाह
सुण्णघरगिरिगुहारुक्खमूलआगंतुगारदेवकुले ॥ अकदप्पब्भारारामघरादीणि य विचित्ताई॥ २३१ ॥ शुन्यवेदमशिलायेश्नतरुमूलगुहादयः॥
विविक्ता भाषिताः शय्याः स्वाध्यायध्ययनवर्घिकाः ।। २३१ ।। विजयोदया- श नि राहत, सुरत,
अ म. व शिक्षा कवचिदन प्राम्भा' शान्दिनोच्यने । आरामगृहं कीडार्धमायाताना आपासाय कृतं । पता विभितसतयः ।
विविवसतिभेदानाह
मूलारा-आगन्तुगार सार्थवाहादिगई। अकदप्पम्भार अकृचप्रारभार अकृत्रिमशिलाहमित्यर्थः । आरामघर आरामगृदं क्रीडार्थमायाताना आवासाय कृतं । विवित्ताई एता विविक्ता वसतय इत्यर्थः ।
विविक्त बसतिकाका क्या स्वरूप है इस प्रश्नका उत्तर आचार्य देते हैं
अर्थ-शून्यघर, पर्वतकी गुहा, पक्षका मुल, देवमंदिर, व्यापारार्थ देश देशांतरों में फिरनेवाले व्यापारि रियोंको निवास करने के लिये बनाये हुये घर, शिक्षागृह, शिलाओंसे स्वयं बना हुआ घर, अकृत्रिम ग्रह, क्रीडा करने के लिये आनेवाले जनों के लिये बनाये हुए घर ये सब विधिक्तरससिकायें है. अत्र घसन दोगाभायमाच..
कलहो बोलो झंझा बामोहो संकरो ममात्तिं च ॥ ज्झाणाज्झयणविघादो णस्थि बिवित्ताए वसीए ॥ २३२ ॥