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________________ बुलारायना ૨ अब एषणा दोषके दश मंद दिखाते है--- यह वसतिका योग्य है अथवा नहीं है ऐसी जिस वसतिका विषयमें शंका उत्पन्न होगी वह शंकित दोपषित समझनी चाहिये. जो वसतिका तत्काल ही सींची गई है अथवा जिसकी तत्काल दो लीपा पोती की गई है. अथवा छिद्रसे निकलनेवाले जलप्रवाह से किंवा पानीका पात्र लुढकाकर जिसकी लीपापोती की गई है वह प्रक्षिता वसतिका समझनी चाहिये. सुचित जमीन के ऊपर, अथवा पानी, हरित वनस्पति, बीज वा त्रसजीव इन के ऊपर पीठ फलक वगैरे रखकर यहां आप शय्या करे ऐसा कहकर जो वसतिका दी जाती है वह निक्षिप्तदोष से युक्त है. इरिताय स्वति काटे, सविध कृत्तिका, वगैरेका अच्छादन हटाकर जो वसतिका दी जाती है वह पिहित दोषसे युक्त है. लकडी, चख, कांटे इनका आकर्षण करता हुआ अर्थात् इनको घसीटता हुआ आगे जानेवाला जो पुरुष उससे दिखाई गई जो वसतिका वह साधारण दोपसे युक्त होती हैं. जिसको मरणाशीच अथवा जननाशौच है, जो मत्त, रोगी, नपुंसक, पिशाचग्रस्त्र और नम है ऐसे दोष युक्त गृहस्थके द्वारा यदि वसतिका दी गई हो तो वह दायक दोषसे दूषित है. पृथिवीजल वगैरह स्थावर जीवोंसे और चींटी, मत्कुण वगैरह स जीवोंसे जो युक्त है वह वसतिका उन्मिश्र दोषसहित समझना चाहिये. मुनिओने जितंन विलस्त प्रमाण भूमि ग्रहण करना चाहिये उससे भी अधिक प्रमाण की भूमीका ग्रहण करना यह प्रमाणातिरेक दोष है. ठंड हवा और कड़ी धूप वगैरह उपद्रव इस बसावेकामें है ऐसी निंदा करते हुए बरातिकामें रहना यह धूम दोष है. यह वसतिका वाहन है, विशाल है, अधिक उष्ण है और अच्छी है ऐसा समझकर उसके ऊपर राग भाव करना यह इंगाल नामका दोष है. इस तरह उद्गम उत्पादन और एपणादि दोषोंसे रहित वसतिका पुनिओके आ
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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