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मूलाराधना
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उत्पादन दोषका निरूपण
जगतमें धाबीके पांच प्रकार हैं. कोई धात्री बालकको स्नान कराती है, कोई उसको आभूषण पहनाती है, कोई उसका मन क्रीडा से प्रसन्न रखती है. कोई उसको अन्न पानसे पुष्ट करती है, और कोई उसको सुलाची है. ऐसे धात्रीके पांच कार्योमेसे किसी भी कार्यका गृहस्थको उपदेश देकर उससे यति अपने को रहनकलिए बसतिका प्राप्त करते हैं अतः वह वसतिका धात्रीदोपसे दुष्ट है.
अन्यग्राम, अन्यनगर, देश और अन्य देशके संबन्धी जनोंकी वार्ता श्रावकको निवेदन कर बसतिका प्राप्त करना यह दूतकम नामका दोष है.
अंग, स्वर, व्यंजन, लक्षण, छिन्न, भौम, स्वप्न, और अन्तरिक्ष ऐसे निमित्तशास्रक आठ विषय हैं. इनका उपदेश कर श्रावकस बमतिकाकी माप्ति करना यह निमित्त नामका दोष है, अपनी जाति, कुल एश्वर्य बगैरह का वर्णन कर अपना माहात्म्य श्रावकको निवेदन कर वसतिकाकी प्राप्ति कर लना यह आजीवनामक दोप है.
हे भगवन् सर्व लोगोंको आहार दान देनेसे और वसतिकाके दानसे क्या महान्पुण्यकी माप्ति न होगी ? एसा श्रावक का प्रश्न सुनकर यदि मैं पुण्यप्राप्ति नहीं होती है एसा कतो श्रावक रुष्ट होकर वसतिका नहीं देगा सा मनमें विचार कर उसके गुरुनाचन मोसार बसिसी किराग दोप है.
आठ प्रकारकी चिकित्सा करके वसतिकाकी प्राप्ति करना यह चिकित्सा नामक दोप है. क्रोध, मान, भाया और लोभ दिखाकर जो वसतिकाकी प्राप्ति कर लेना वह क्रोधादि चतुष्टय दोष है.
जाने वाले और आनेवाले मनिऑको आपका घर ही आश्रय स्थान है. यह वृत्तान्त हमने दूर देशमें भी सुना है ऐसी प्रथम स्तुति करके बसतिकाको प्राप्त करना यह पूर्वस्तुति नामका दोष है. निवास कर जानेके समय पुनः भी कभी रहने के लिए स्थान मिल इस हेतुसे स्तुति करना यह पश्चात्स्तुति नामका दोष है.
विद्या, मंत्र अथवा चूर्ण प्रयोगसे गृहस्थको अपने वश कर वसतिकाकी प्राप्ति करलेना यह विद्यादि दोप है. भिन्न कन्या अर्थात भित्र जातीकी कन्याके साथ संबंध मिला देकर वसतिकाका प्राप्त करना अथया विरक्तोंको अनुरक्त करनेका उपाय कर उनसे वसतिका प्राप्त कर लेना यह मुलकर्म नामका दोष है. इस प्रकार उत्पादन नामक दोषके सोला भेद कहे हैं.
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