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________________ 48060639 आभास मूलाराधना - ५४९ - जिस घरमें विपुल अंधकार हो तो यहाँ प्रकाशके लिये मितीमें छेद करना, जहां काष्टका फलक होगा तो वह निकालना, उसमें दीपककी योजना करना यह पादुकार दोष है. द्रव्यत्रीत और भावक्रीत ऐसे खरेदी किये हुए घरके दो भेद हैं. गाय, बैल वगैरह सचित्त पदार्थ देकर संयतोंके लिये खरीदा हुआ जो घर उसको सचित्त व्यक्रीत कहते है. घृत, गुड, खांड ऐसे अचित्त पदार्थ देकर खरीदा हुआ जो घर उसको अचित्तक्रीत कहते हैं. विद्या, मंत्रादि देकर खरीदे हुए घरको भावक्रीत कहते हैं. अल्पऋण करके और उसका सूद देकर अथवा न देकर संयनोंक लिय जो मकान लिया जाता है वह पामिछ दोपसे दृषित है. मेरे घर में आप ठहरो और आपका घर मुनिआनो रहने कलिये दो ऐसा कहकर उनस लिया जो घर वह परियट्ट दोपसे पित समझना चाहिये, अपने घरको भीतके लिये जो स्तंभादिक सामग्री तयार की थी वह संगतोंके लिये लाना वह अभिघट नामका दोप है. इस दोपके आचरित और अनाचरित ऐसे दो भेद हैं. जो सामग्री दूर देशसे अथवा अन्यनामस लायी होय तो उमको अनाचरिम कहते हैं और जो ऐसी नहीं होय तो वह आमन्ति समझना चाहिये. ईट, मट्टीके पिंड, कांटोंकी बाडी अथवा कवाट, पाषाणोंग डका हुआ जो धर खुला करके मुनिओंको रहे नके लिये देना वह उद्भिन्न दोष है. नसैनी बगरहसे पढ़कर आप यहां आइये आपके लिये यह वसतिका दी जाती है एसा कहकर संयतोंको दुसरा अथवा तीसरा मंजिला रहनेके लिये देना यह मालागेड नामका दोप है. राजा अथवा प्रधान इत्यादिकोंसे भय दिखाकर दूसरका गृहादिक यतिओंको रहनेके लिये देना वह अच्छेज्ज नामका दोष है. आनमृष्ट दोषके दो भेद हैं. जो दानकार्य में नियुक्त नहीं हुआ है ऐसे स्वामीसे जो वसतिका दी जाती है वह अनिसृष्ट दोषसे दृषित है. और जो वसतिका बालक और परवश ऐसे स्वामीसे दी जाती है वह भी उपयुक्त दोषप्ति समझनी चाहिए इस तरहसे उद्गमदोष निरूपण किए, ४४०
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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