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________________ भावाखा मुलाराधना ४१८ कीचड करना, खंबे तयार करना, अग्निसे लोह तपाचना, करोंतसे लकही चीरना, पटासीसे छीलना, कुन्हाटीसे छेदन करना, इत्यादि क्रियाओंसे पदकायजीयाको बाधा देकर स्वयं वसतिका बनाई हो अथवा दूसरोंसे बनवाई हो । वह वसतिका अधःकर्म के दोपसे युक्त है. २ जिमने दीन, अनाथ अथवा कृषण आगे अपना मर्चधमक साधु आचेंगे किंचा जैन धर्मसे भिन्न एसे साधु अथरा निग्रंथमुनि आवेंग उन सबजनोंको यह वसति होगी इम उद्देशसे जो वसतिका बांधी जाती है वह उद्देशिक दोपसे दुष्ट है.' ३ जब गृहस्थ अपने लिये घर बंधवाता है तब यह कोठरी मयतोंके लिये होगी ऐसा मनमें विचार कर जो बंधवाई गई वह वसतिका अम्भोन्भव दोषसे दुष्ट है. । अपने घरकं लिय लाये गये बहुत काष्टादिकोंसे श्रमणोंक लिय लाये हुबे काष्टादिक मिश्रण कर बनवाई गई जो बमतिका वह पूतिक दोपसे दुष्ट है, ५ पास्त्रडि साधु अथवा गृहस्थोंके लिये पर बांधनेका कार्य शुरु हुआ था सदनंतर संयतोंके उद्देशसे काष्ठादिकोंका मिश्रण कर बनवाई जो वसतिका यह मिश्र दोषसे दृपित समझना चाहिये. ६ गृहस्थने अपने लिये ही प्रथम बनवाया था परंतु नंतर यह गृह संयतोंके लिये हो ऐसा संकल्प जि. समें हुआ है वह गृह स्थापित दोषसे दुष्ट है. ७ संयत अर्थात् मुनि वे इतने दिनोंके अनंतर ओवग अतः जिस दिनमें उनका आगमन होगा उस दिनमें सब घर झाडकर, लीपकर स्वच्छ करेंगे ऐसा मनमें संकल्प कर प्रवेशदिनमें वसतिका संस्कृत करना वह पाइडिंग नामका दोष है. पाहुडिग दोषके प्रथम बलिनामक दोषका मूलाराधना दर्पणमें ऐसा लक्षण लिखा है-यक्ष, नाग, माता, कुलदेवता इनके लिये घर निर्माण करके उनको देकर अवशिष्ट रहा हुआ स्थान मुनिको देना यह बलि नामका ४४८ मुनि प्रवेशके अनुसार संस्कारके कालमें हास कर अर्थाच उनके पूर्वमें संस्कारित जो वसतिका वह पादुकृत दोपसे क्षित समझना चाहिये,
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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