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मूलारावना
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आसनयोगनिरूपणा
समपलियंक णिसज्जा समपदगोदोहिया य उक्कुडिया || मगरमुह हृस्थिसुंडी गोणणिसेज्जइपलियंका ॥ २२४ ॥ पर्यकमपर्यीद्मगवासनम् ॥
आसनं हस्ति च गोदोहनकराननम् ॥ २२२ ॥ विजयोदयाखपटिक सिंजा सभ्य
छोड़ने आसनभिवास इस्तिहाभिय अर्द्धपर्यकं ।
सम्पदं रमेनासनं । गोदोहिंगा गो. कर सुख कृत्या पायानं ही प्राय गोगगिसेक्स अद्धपलियेक गोतिपद्या गवामासनभित्र
एवं स्थानयोगं निरूप्यासनयोगं निरूपयति
मूलारा - संपलियंकणिसज्जा सम्यकपर्यास । समदं स्किपिंडसमकरणेनासनं । गोदोहिंगा गोदोहे आसनभित्र पार्किंगमुत्क्षिप्य नादाभ्यामासनम् । उडिया युवाभ्यां भूमिस्पृशतः समपादाभ्यास | सगरमुद्र मकरम्थ गुनभित्र कृत्वा पादासनं । हथिगुंडी हस्तिहस्तप्रसारणमिव एक पार्क संकोच्य तदुपरि द्वितीयं पादं प्रसार्यामनं एकं हस्तं प्रसार्येत्यपरे । गोणिसेज्जा जनाद्वयं संकोच्य गोरिवासनं । अपलियं अर्द्धपर्यकासनं गोनिषद्येव गधासनमापकमिति व्याचष्टे ।
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आसनयोगका वर्णन -
अथ उत्तम पर्यकासन से बैठना उसको पर्यकनिषद्या कहते हैं. समपद - जंघा और कटिभागको समान करके बैठना. गोदोदिया -- गायको दोहनेके समय जैसा बैठते हैं उस पद्धतीसे बैठना उत्कुटिकासन - जमीनको स्पर्श न हो इस रीती से समान पार्वोपर बैठना वह उत्कुटिकासन है.
मगर मुह - भगर के सुखसमान पावांकी आकृति कर बैठना. हरिसुंडी हाथी जैसे अपनी सुंडको पसारता है तद्वत् एक पांव पसारकर बैठना, एक हाथ पसारकर बैठने को भी यही नाम हैं. गोणिसेज्ज-गवासन और कासन ये सब बैठकर कायक्लेश तप करनेके प्रकार हैं.
भव
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