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मूलारामा ४३८
पश्चिम दिशा से पूर्व दिशाको जाना. अर्थात सूर्य के सम्मुख गमन करना. उद्धरि-सूर्य जब मस्तकपर चढ़ता है ऐसे समय में गमन करना. तिरियरि-सूर्यको निम् करके गमन करना, उन्भागमेण गमर्ग- स्वयं ठहरे हुए ग्राम से दुसरे गांवको विश्रांति न लेकर आहारके लिये गमन करना और जाकर स्वस्थानको आना यह सब गमनरूप कार्यक्रेश तप हैं.
स्थानयोगनिरूपणा -
साधारणं सवीचारं सणिरुद्धं तहेव बोस || समपादमेगपाई गिडोलीणं च ठाणाणि ॥ २२३ ॥ सावष्टमं तनृत्सर्ग संक्रममसंक्रमम् ॥
गृद्धीनमवस्थानं समपादैकपादकम् || २२१ ॥
विजयोश्या-साधारण प्रसृष्टस्तंभादिकमुपाश्रित्य स्थानं । सवीवारं ससंक्रमं पूर्वावस्थिताद्देशाद्द्वत्वापि स्थापितस्थानं | समिरा निश्चलमवस्थानं । तहुँच तथैष । घोस कायोत्सर्गः समपादौ समौ पादी कृत्वा स्थानं । एगपाद एक पादेन अवस्थानं । गिद्धोलणं गृद्धोद्गमननिय वा प्रसार्यावस्थानं ।
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गृलाग-साधारणं प्रसृष्टं स्तंभादिकमवष्टभ्य स्थानं उद्भस्यावस्थानं । सविचारं ससंक्रमं । पूर्वस्थानात् स्थानांतरे गखादिसादिपरिकटदेनावस्थानमित्यर्थः । सशिरुद्धं विश्वलं तत्रैवावस्थानं । वोस कायोत्सर्गः । समपार्य सम पादौ कुन्या स्थानं । एगपार्थं एकेनैव पादेनावस्थानं । गिद्धोटीनं गुम्यो गमनाय बाहू, सास्थानम् ।
स्थानयोगका निरूपण करते हैं
अर्थ- स्वच्छ स्तंभ वा भीव इत्यादिकोंका आश्रय लेकर खडे होना यह साधारण कायक्लेश है, सविचारपूर्वस्थानसे स्थानान्तरको जाकर वहां एक पहर, एकदिवस वगैरह प्रमाणसे खड़े होना, स्वस्थानमें ही निश्चल खड़े रहना यह संनिरुद्ध है. वीस कायोत्सर्ग करना. समपाद-पांच भूमिपर समान रखकर खड़े होना एकपादएक पांवसेही खडे रहना. गिोली-गीघपक्षी जैमा आकाशमें उड़ते समय अपने पंख फैलाता हैं वैसा बाहु फैलाकर खड़े होना.
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