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मलाराधना
आश्वास
भिक्षाग्रहणं । दत्तिपासपरिमाण एकेनैव दायकेन द्वाभ्यां वा दीयमानस्य ग्रहणं दत्तिपरिमाण । आनीतायामपि भिक्षायां श्यत एव प्रासान् महीष्यामि इति घासपीरमाणं । पिंडेसणाओ पिंडभूतमेव अशनं गृहामि न पानमिति । पासणाओद्रवमेवाशन गृहामि न पिंडमिति | जागूय यवागू। पोग्गलिया धान्यान्येव निप्पाचणकादीनि भिक्षायामिति । खिच्चामिन्यन्यः।
अर्थ- इसही पाटकमें प्रवेश कर मिली हुई भिक्षा में ग्रहण करूंगा दूसरे पाटकमें मैं आहारार्थ जाउंगा नहीं ऐसी प्रतिज्ञा करना, अथवा मैं एक पाटको अथवा दोन पाटकॉमें भिक्षा मिलनपर ग्रहण करगा अन्यथा नहीं गमी प्रतिज्ञा करना. इस घरके परिकरकी भूमी में यदि आहार मिलेगा तो मैं ग्रहण कर घरमें पवेश न करूंगा एमी प्रतिज्ञा करना. इसको नियंसण कहते हैं. पाटककी भूमिपर ही आहार मिलेगा तो मैं आहार स्वीकारूंगा परंतु पाटकके घरोंमें प्रवेश नहीं करूंगा ऐसा संकल्प करना इसको पाटकनिवसन परिमाण बहने हैं.एकदफ अथवा दो दफे जो अन्न पोसा है उतनाही में ग्रहण करूंगा अन्यथा नहीं यह भिक्षापरिमाण है. एक दाता अथवा दोन दाताान दिया हुधाअन्न ग्रहण करूंगा ऐसी प्रतिज्ञा करना यह दातपरिमाण संकल्प है. दाताने देने के लिये भिक्षा लाने पर भी इतने ही ग्रास में स्वी कारूंगा इस तरह का संकल्प करना यह ग्रासपरिमाण संकल्प है. पिंडरूष जो अन्न है वही मैं ग्रहण करूंगा द्रवरूप पदार्थ ग्रहण न करूंगा ऐसा संकल्प करना यह पिंडषणासंकल्प है. द्रवरूप अनही मैं ग्रहण करूंगा ऐसी प्रतिज्ञा करना. अर्पिडेपणासंकल्प कहते हैं, रबडी इत्यादि जो पतली भी नहीं और पिंडरूप भी नहीं है वह भक्षण करूं | ऐसा संकल्प करना. पावटे, चना, मसूर इत्यादि धान्यरूप अन्न ही मैं ग्रहण करूंगा ऐसा संकल्प करना ये सब वृनिपरिसंख्यान तएके भेद हैं.
संसिठ्ठ फलिह परिखा पुष्फोवहिदं व सुद्धगोवहिदं ॥
लेबडमलेवडं पाणयं च णिस्मित्थगमसित्थं ॥ २२० ॥ विजयोन्या-मंसिष्टुं शाककुल्मागविर्भसएमेव । फन्दित ममतादवम्तिशा मध्यावस्थितीदनं । परिया ध्यंजनमध्यावस्थितानं । पुष्फोवहिदं च व्यंजनमध्ये पुष्पालरिब अवस्थिसिक्थं । सुद्धगोहिदं । शुद्धन नियावादिभिमिशेणानेन उवाहिद सं शाकव्यंजनाधिकलेवर्ड तोपकारि । अलेबई यच्च हसन सजति । पाजगं पान च कारक ? मगसित्य गियर्गहन पानं तत्साहन च ।