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+Pra-Paramewom
मूलाराधना
आवासः
सपरिसंवाननिरूपणाय गाथाबनुष्यमुचरम
गत्तापञ्चागदं उज्जुवीहि गोमुसियं च पेलवियं ॥ संबूकावटॅपि य पदंगवीधी य गोयरिया ॥ २१८ ।। गृहरति प्रामुका भिक्षां गत्वा प्रत्यगतो यतः ॥
शंकाव गोमूत्र एमालसायन । २१७॥ विजयोदया-गत्तापञ्चागर्द। यया वीच्या मतः पूर्व तयव प्रत्यागमनं कुर्वन्यवि लभने मिक्षा गृह्णाति नान्यथा, हिंध्या बीया गतो यदि लभते गृहाति लरथा । गोमूत्रिकाकारं भ्रमण या संपादयन् । पेलांग वंशलादि मिशिदिनं बमुयणदिनिक्षेपणार्थ पिधानसहितं यत्तद्वशतुरस्राकारं भ्रमपी । संघकानई पि शंकावर्त इब । पर्दगत्री. श्रीय मंगमाला पतंगवीधीत्युच्यत । साथचा भ्रमति तथा भ्रमण । गोयरिया। गोवा भिक्षायां भ्रमण । एचभनेन भ्रसंगान लम्चा मित्रां गृहामि नाम्यथेति कृतसंकल्पना वृत्तिपरिसंख्यानं ।
मूलारा-गत्तापञ्चागदं । यया वीयागतस्तयैव प्रत्यागच्छन्यदि भिक्षां लभते तदा गृहाति इति । उजुविही प्रख्या प्रांजलया वीभ्या मार्गेण यदि गतो लभते सदा गृण्डाति । गोमुत्तिय गोमुत्रिकाकार भिक्षार्थ भ्रमण। पेलविर्य पेट्टाबच्चतुरखं भ्रमणं । संचुकाबटुं शंखावर्तबदम्यतरमावर्त्य बहिर्धमतो भिक्षाग्रहणं । पतंगवीही पतंगमालावदितस्ततो भ्रमणं, एकस्मिन्मेष कटाश्रितगृहे गमनं वा । गोवरिया योग्यं यथाप्राप्ताहारग्रहणमित्यर्थः।
वृतिपरिसंख्यान तपका निरूपण आचार्य चार माथाओंमे करते हैं
अर्थ-जिस भागमे आहारके लिये गमन कर उसी मार्गमे लौटते समय यदि आहार मिलेगा तो मैं ग्रहण करूं ऐसी प्रतिज्ञा करना वह गतप्रत्यागन है, सरल रास्तेसे जाते समय यदि आहार मिलेगा तो आहारग्रहण करूंगा ऐसी प्रतिज्ञा करना. यह ऋजुवीथी है. बैल मूनते जाता है उस समय जो आकार रस्तेपर उत्पन्न होता है वैसा मोडा खाते हुये भ्रमण करनेवाले मेरेको यदि आहार मिलेगा तो मैं ग्रहण करूं ऐसी प्रतिज्ञा करना इसको गोभूत्रिक कहते हैं. बासके टुकडे, लकडी इत्यादिसे बनाया हुआ, और जिसमें ढक्कन लगा हुआ है ऐसा वस्न सुबर्णादि रखनेका जो चार कोनोंका पदार्थ अर्थात् संदक-पेटीके समान चतुष्कोण भ्रमण करते हुए मेरेको यदि आहार मिलेगा ले ग्रहण करूं ऐसी प्रतिज्ञा करना इसको पेलविय कहते हैं. शंखके आयतों के समान ग्रामके अंदर भ्रमण