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________________ मूलाराधना । आश्वास ४३२ सुद्धोदणं केवलभक्तं । आयबिलं असंस्कृतकांजिकमिश्रभक्तं । आयामोड़ मंडौदनं स्तोपाजलासक्थायं वा। विगडोदण अवपक उप्णोदककूर वा। अर्थ-अरस अर्थात स्वादरहित पदार्थ, भोजन समयको छोडकर अन्यसमयमें पकाया हुआ अर्थात भोजनके समयमें जो ठंडा हुवा है ऐसा पदार्थ, जिसमें घी वगैरह नहीं मिलाये हैं ऐसा भात, जिसका रूक्ष स्पर्श है ऐसा अन्न, जैसे रोटी वगैरे रूखा पदार्थ. असंस्कृत कांजीस मिश्र ऐसा भात, आयामोदण-जिसमें थोडा पानी है और सिक्थ जादे है ऐसा भात, बहुत पका हुआ भात अथवा गरम जल जिसमें मिला हुआ है ऐसा भात खाना चाहिये. इच्छेवमादि विविहो णायब्बो हवदि रसपरिचाओ ।। एस तवो भजिदको विसेसदो सल्लिहंतण ॥ २१७ ।। ६ वर्ग याचनाहारा या विक्रतिकारिणः ।। ते सर्वे शक्तिसस्त्याज्या योगिना रसवर्जिना ॥ २१६।। संतोषो भावितः सम्यग् ब्रह्मचर्य प्रपालितम् ।। दर्शितं स्वस्य वैराग्यं कुर्वाणेन रसोज्सनम् ॥ २१७ ॥ विजयोदया-इशेवमाविधिविहो एवमादिविविधो नानाप्रकारे पादयो स्वर रसपरिशाओ ज्ञातव्यः सर्वे रसपरित्यागः । एस तयो भजिदब्यो पत्तद्रसपरित्यागाख्यं तपः । भजिदयो सव्यं । विसेसको विशेषेण । सलिईतेप कायसरग्वनां कुर्वता | चाओ रसाण । मूलारा-इयेयभादि भीरादिग्नागादिप्रकारपुरस्सरा: 1 विनेसदो अनशनादिभ्योऽतिशयन । मल्लिहंनेण कायसल्लेखनां कुर्वता। अर्थ--इत्यादि नानाप्रकारका रसपरित्याग जानना चाहिये. यह रसपरित्याग नामका नप शरीरसल्लेखना करनेवाले मुनिको विशेषरीतीसे करना चाहिये, अर्थात अनशनादि तपोंकी अपेक्षा यह तप अधिकतासे करना चाहिये. रसपरित्याग तपका स्वरूपवर्णन समाप्त हुआ. पाAATE STERTA
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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