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________________ मूलाराधना माश्वासः विजयोरया-- सारिवियोश्री चतस्रो महाधिकृतयः । महत्यावेतसो विकृतेः कारणत्वात् महाधिकृतय इत्युच्यते । होति भवंति 1 णवणीदमजमंसमह नवनीतं, मचं, मांस, मधु च। कीदृश्यस्ता? कंसापसंगप्पासंजमकारीओ पदायो । कांक्षा गार्थ, प्रसंगः पुनापुनस्तत्र वृत्तिः, दर्पः इलेन्द्रियता. असंयमः रसविषयानुरागात्मकः इंद्रियासंयमः, रम अर्जतुपीडा प्राणासंयमः, पतान्दोगनिमाः कुर्वन्ति । ___रसपरित्याग गाथापंचकेनाविरूपासुर्नवनीनादित्यागोऽपि रापरित्यागाच्यं तप इति गाथादोन तमेव तावदन्वाचष्टे मूलारा---महावियडीओ महल्यानेतमो विकने: कारणत्वाम्महाविकृतयश्चित्तधिकारकारिरमा इत्यर्थः । अत्र नवनीतं कांक्षाकारि गाद्धकरं, मदां प्रसंग पुनः पुनः अगम्यगमनादिकं वा कसेतीति प्रसंगकारि। मांसमिद्रियदर्पकरं । मरमविषयानुगगत्मणागिद्रियायगरमज जनुषीदागकाशमयमं । करोतीलयमवर, पाचार्यपि वा मणिगीटा कागणी । वृतम् । कांक्षाकनवनीनमक्षमदमास प्रमंगाई। मा क्षौद्रमसंयमार्थमुदितं यद्यच चत्वार्यधि ।। सम्मलिसवर्णजनुनिचितान्युचर्मनोचिकिया- । हेतुत्वादपि यन्महावित यस्त्यध्यान्यतो धार्मिकैः ॥ रसपरित्याग तपका निरूपण करते हैं अर्थ-मक्खन, मदिरा, मांस और शहद ये चार पदार्थ महा विकृति अर्थात् अंतःकरणमें विकार उत्पन्न होनेके लिये कारण हैं, ये चार पदार्थ कांक्षा-वार बार अभिलाषा उत्पन्न करते हैं, इंद्रियोंको उन्मत्त करते हैं, असंयमको उत्पन्न करन हैं. इतने दोष इनके सेवनसे होते हैं. असंयमके दो भेद हैं. इंद्रियासंयम और प्राणासंयम. स्वादमें अनुराग उत्पन्न होना यह इंद्रियासंयम है. और मयादिकोंके रसमें उत्पन्न हुने माणिओंका भक्षण करते समय घात होना यह प्राणासंयम है. ४२९
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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