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आश्वासः
मूलाराधना
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निद्राजयः समाधानं स्वाध्यायः संयमः परः।
हपीकनिर्जयः साधोरवमोदर्यतो गुणाः ॥ २११।। विजयोदया-गुत्तरसेढीप एककवलोत्तरघेण्या परिहीणो परिहीनः । ऊमोदरियनवो अचमोदर्यास्यं तपःकिया पाचदकसिक्वकंचा अवशिष्टं । आहारस्याल्पतोपत्त क्षणमिदं यन्यथा कथमेकसिक्थकमात्रभोजनोद्यतो भवेता नन नाहागेन्यूनः कथं ता इत्युच्यते इति । केचित्कशनि थानतापरिहारम्य नपसो हेतुत्यानप इत्युच्यते । अवमोयरियं ॥
मूलारा-तत्तो इत्यादि-तस्मात्पुखीभोजनादेकद्वयादिहानिक्रमेण याबदकपासपरिहीन आहारोऽवमोदये तप: स्यात् । पयसिच्छ आहारस्यापतोपलक्षणमिदं अन्यथा कथगेकामिक्थमात्रभोजनोद्यतो भवेत् । आयनतापरिहारस्य तपोहेतुत्वात् एतत्तप इत्युच्यते । एतद्गुणा यथा--
निद्राजयः समाधान स्वाध्यायः संयमः परः ।।
दुकनिर्जयः साधौरवमोदर्यतो गुणाः 11 अर्थ-स्री और पुरुषोंका जो ग्रासका परिमाण अट्ठाईस और बत्तीस ग्रास कहा है उसमें एक प्रास अवशिष्ट रहने तक जो कम करते जाना वह सब अवमोदर्य तपही है. एक ग्रासमेंसे भी समान विभक्त किये हुथे अर्द्ध ग्रासतक भी इस तपके भेद होते हैं, और अर्द्धग्रासखे कम करते करते एक सिक्यथतक भेद होते हैं. एक कालसे लेकर एक सिक्थतक जो भेद बताये है वे अल्पाहारका केवल उपलक्षण है. क्योंकि केवल एक सिक्य खाने के लिये कोन उद्युक्त होगा. शंका-न्यून आहार करना यह तप कैसा समझा जायेगा. इसका उत्तर यह है कि अभिलापासे बहुत अन्न खानेका त्याग इस तपमें होता है अतः इसको तप कहते हैं.
रसपरित्यागो निरूप्यते
चत्तारि महावियडीओ होंति णवणीदमजमंसमहू ॥ कंखापसंगदप्राऽसंजमकारीओ एदाओ ॥ २१३ ॥ चतस्रो गृधनुतासक्तिदर्षासंयमकारिणीः॥ नवनीतमुरामांसमध्वाख्या विकृतीर्विदुः ॥ २१२ ।।