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मूलाराधना
आश्वासः
हैं. तीन उपवासाको अष्टम कहते हैं, चार उपवासाको दशम कहते हैं. ऐसे ही आगे भी समझना. संन्यास लेनेपर याबज्जीव चारो आहारोंका त्याग करना यह सानशन है. ग्रहण और प्रतिसेवना कालमें अद्धानशन तप मुनि करते हैं और मरणसमयमें-संन्यास कालमें सर्वानशन तप करते हैं, दीक्षाग्रहण कर जबतक संन्यास ग्रहण किया नहीं तबतक ग्रहणकाल माना जाता है. तथा व्रतादिकोंमें अतिचार लगनेपर जो प्रायश्चित्तसे शुद्धि करनेके लिये कुछ दिन अनशनादि तप करना पड़ता हैं उसको प्रतिसेवना काल कहने हैं.
अद्धानानविकल्प प्रतिपादयनि
होइ चउत्थं छठ्ठमाइ छम्मासखवणपरियंती ॥ अद्धाणसणविभागो एसो इच्छाणुपुच्चीए ॥ २१० ।। एकद्वित्रिचतुःपंचषट्सप्ताष्टनवादयः ।। उपबासा जिनस्तत्र षण्मासावधयो मताः ॥ २०७ ।। यहुदीपाकरे ग्रामे प्रवेशो विनिवारितः ।।
संयमा वर्द्धितः पूतः कुर्वतानशनं तपः ।। २०८ ।। विजयोदया-अहाणसणविमागो घोर इनि पनघटना । अद्धानशनचिभागो भवति । चत्य छमा छम्मासखमाणपियंतो चनुचवणारमादिगणमासक्षपणपर्यन्तः । इच्छाणुपुरवीर आन्मन्छाचतेने ।
अद्भानशनविकल्पं वरिःमूलारा-छम्मासखमग षण्मासोपवायाः । इच्छाणपुब्बीए पामेच्छाक्रमेण ।
अर्थ-चतुर्थ, पष्ट, अष्टम बगैरह उपवासों से छह महिनो तक के उपशसों को अद्धानशनतपके भेदोंमें परिगणित करना चाहिये. ये उपवास मुनिराज अपनी इच्छा के अनुसार करते हैं.
१ आत्मेच्छाक्रमेण इति खपुस्तक पाठः ।