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मूलाराधना
आश्व
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मलारा-भायमाणो भावयमानः । अंसक्लिष्टभावना पुनः पुनः प्रवर्तयनित्यर्थः । उनकमदि प्रारभते । भावनाआंका वर्णन करने पर सट्टेखनाधिकारका संबंध दिखाते हैं.
अर्थ-इस प्रकार पांच प्रकारकी असंक्लिष्ट भावनाओंका अभ्यास करनेवाले मुनि बाह्य अभ्यंतर बारा प्रकार के तपके द्वारा सल्लेखना को प्रारंभ करते हैं.
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भदमहन्वा व्यापर्णयितुं अशक्या सहलेखनति भदमा--
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- SaANGARittarAAAAASARAMARus.
सल्लेहणा य दुविहा अभंतरिया य बाहिरा चेव ॥ अभंतरा कसायेसु बाहिरा होदि हु मरीरे ॥ २०६ ॥ सल्लेग्वना द्विधा साधोरंतरानंतरेप्यते॥
तत्रांतरा कषायस्था द्वितीया कायगोचरा ॥ २०४ ॥ विजयोदया--सलेहणा य दुविहा सल्लेखना च द्विप्रकारा। मम्भनरिया य बाहिरा वेष अभ्यंतरा राहगा चेति । अभंतग कसायंसु अभ्यंतरा सलेखना क्रोधादिकपायविषया । बाहिरा होदि सरीरे । बाह्या भवति मल्लेखना शरीरविषया ॥
सदेखना द्वैविध्यनाभिधने..
सल्लखां गाथापंचशता प्रपंचयिष्यसामान्यतम्तदुपाय निर्दिशति-- मूलारा-पष्टम् ।
भेदके बिना सहखनाका वर्णन करना शक्य नहीं है इसलिये भेद बताते है.अर्थ-मल्लखना अभ्यंतर सल्लखना व बाह्य सल्लेखना एस दो भेद है, क्रोधादि कषायोंको कृश, कृश
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