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आश्वासा
मृलाराधना
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पांचवी धृतिबलभावना है. दुःख आनेपर भी निर्भय रहना ही धैर्यका लक्षण है. इस धैर्यवलकी भावना करना अथात अभ्यास करना यह धृतिबलभावनाका स्वरूप है. इस भावनाके बलस मुनीश्वर दु:खद परीपहरूप सेनासे युद्ध करते है ऐसा वर्णन आचार्य करते हैं
अर्थ-चार प्रकारके उपसौके साथ भूक, तहान, शीत उष्ण वगैरह चाबीस प्रकारके दुःखोंको उत्पन्न करनेवाली परीपहरूपी सेना, नुर्धर संकटरूपी वेगसे युक्त होकर जब मुनिओपर आक्रमण करती है तब अल्पशकिके धारक जीवोंको घहुन भय उत्पन्न होता है.
धिविधणिबद्धकच्छो जोधेइ अणाइलो तमश्चाई ॥ धिदिभावणाए सूरो संपुण्णमणोरहो होई ।। २०३ ॥ धीरतासेनया धीरो विवेकशरजालया ॥ जायते योधयनाशु साधुः पूर्णमनोरथः ।। २०१।।
जायते योधयात धृतिसूत्र
दिभावणाण, भृतिभावनसाथ । सगुण्णमण
विजयोदया-तं तो पृतना । जोधा बोधयति । कया सह ? धिदिभावणाण धृतिभावनया । कः ? चिदिर्धाणदयनककड़ो प्रन्या निनगं वक्षः । भूरो शुरः । अगादलो अनाकुटो विक्रमवान, । कलमाचरे सम्म । संतुषणमणोरहो होइ । संपूर्ण मनोग्यो भन्नति ॥
मूलारा--विविधणियजुकच्छो धृतिः परमप्रसत्तिः संवान्वर्थ यता . कक्षा परिवेष्टनं येन । जोधेदि योधयति । अणाइलो अनाकुलः । न ता परीपह चमू । अवधिदो अग्रायित: निर्भरोऽनोभो वा । घिदिभावणार निभावगया सह अथवा धृतिभावनया कर्तभूतया तां घातयति योधयनीति व्याख्यनम् ।
अर्थ-धैर्यरूपी ऊपरका परिधान करनेका वस्त्र जिसने दृढ बांधा है ऐसा पराक्रमी शूर मुनि कृतिभावनाको हृदयमें धारण कर सफल मनोरथ होता है.
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