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मलारापना
आधासः
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लफ है, परंतु जिसने तपश्चरण किया नहीं, जो इंद्रियसुखमें निमग्न हुआ वह रत्नत्रयसे भ्रष्ट हो कर ममाधिमरणम च्युत होता है. यत्र हटान्तमाह
जोग्गमकारिजतो अस्सो मुहलालिओ चिरं कालं || रणभूमीए वाहिज्जमाणओ जद ण कन्जयरो ॥ १९० ॥ लालितः सर्वदा सौख्यैरकारितपरिक्रियः ।।
कार्यकारी यथा नाचो वायमानो रणांगणे ॥ १२॥ विजयोदया-जोग्गमकारिजंतो याक्चालनम्रमणलंधनाविका शिक्षा कार्यमाणः। मस्सो सभ्य1 मुहलालो सुरालितः । चिरं कालं रणभूमीर युद्धभूमौ । वाद्विजमाणगो पाहामानः । जहण करजकरो यथा कार्य न करोति तथा यतिरवि ॥
गुलारा--जोगं भायनभ्रमणलंघनादिकां शिक्षा | शे गाधात्रयं सुगमम् । इस विषयमें दृष्टान्त कहते हैं
अर्थ-जैसे शब्दोंका अभिप्राय ध्यान रखना, चलाना, वेगसे घुमाना, कूदना वगैरह कृत्योंका अभ्यास जिससे कराया गया नहीं है, जिसको सुखसे पुष्ट किया है, ऐसे अश्वको बहुत काल व्यतीत होनेपर युद्धभूमीमें ले जानेपर यह कार्य नहीं करता है. शत्रूको जीतनेमें अपने स्वामीको सहायता देना दूर ही रही परंतु भयसे भाग जा कर मालिकका काम बिगाड देता है वैसे यति भीसुगमन्यात व्याख्यायते गावावयम-नवभाषणा।
पुब्बमकारिदजोग्गो समाधिकामो तहा मरणकाले ॥ ण भवदि परीसहसहो बिसयसुहपरम्मुहो जीवो ॥ १९१ ।। जोग्गमकारिजंतो अस्सो दुहभाविदो चिरं कालं ॥ रणभूमीए वाहिज्जमाणओ कुणदि जह कजं ॥ १९२॥
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