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मृलागधना
আস্থা
विजयोदया-तबभाषणाए तपोभावनया 1 असरुवशनत्यागेन इव्यभाषरूपेण । पंचेंदियाणि पंचापि इंद्रियाणि । तस्स तपोभावनारतस्य । बसति वशमुपयाति । यतोऽस्मात् दंताणि दांतानि निगृहीतवर्षाणि । इंदिययोगायरिश्री इंद्रियाणां शिक्षाविधाय्याचार्योऽसी समाधिकरणानि रक्षत्रयसमाधानक्रियाः । सो सः कुणइ करोति । एतदुक्तं भवति । नवानि रंट्रिगान मापन कारखानपति शुधादिभिरूपद्रुतात्मा न वामलोचमासुरतक्रीड़ादी करोन्यादरमिति प्रतीतमेव । ननु चानशनादी प्रवृत्तस्याहारदर्शने तदाथियणे तदासेवायां चादरो नितांतं प्रवर्तते ततोऽयुक्तमुध्यते तपोभावनया दांतानींद्रियाणीति । इंद्रियविषयरागकोपपरिणामानां कर्मानचहेतुतया अहितत्वप्रकाशनपरिशानपुरःसरतपोभावनया विषयसुखपरित्यागात्मकेन अनशनादिना दान्तानि भवंति इंद्रियाणि । पुनः पुनः सेव्यमानं विषयसुखं राग जनयति । न भावनांतरान्तस्तिमिति मन्यते।
तपोभावना कथं समाध्यंगमित्याह--
मूलारा · तवभावणाए असकृदशनत्यागेन । तानि निगृहीतदर्पाणि । तस्य तपोभानमारतस्य यतेः । बसमति all वर्श बान्ति । इंदियजोगाचरिओ इंद्रियशिक्षाविधायी आचार्यः । सगाधिकरणाणि रनवयममाधानार्धाः क्रियाः ।
बासनप्राणायामप्रन्याचारधारणाभ्यानलक्षणाः । सो तपोभावनादातवशी द्रियः । अथवा तपोभावनया साधोः पंचंद्रियाणि दातानि संति वशमा यान्ति । स प्रसिद्ध इंद्रिययोग्याचार्यो मनश्च समाधिकारणानि करोति ॥
तपोभावना समाधीका उपाय कैसी होती है इस प्रश्नका उत्तर आचार्य देते है
अर्थ-वारंवार आहारका त्याग करनेसे तपोभावनाम तत्पर रहनेवाले साधुकी पांचो इंद्रियां वश हो जाती है. चार प्रकारका आहार छोडना यह द्रव्यतपभावना, है और वह आहार छोडनका जो मनःसंकल्प वह भावतपोभावना है. इस दो प्रकारकी तपोभावनासे इंद्रियोंका मद नष्ट होता है. तदनंतर ये आराध, कके वश होती है. इंद्रियोंको शिक्षा देनेवाला आचार्य अर्थात् साधु रत्नत्रयमें जिनसे स्थिरता होती हैं. ऐसी क्रिया करता है. भावार्थ यह है कि, जब तपश्चरणसे इंद्रियोंका दमन होता है तब मनमें काम विकार उत्पन्न नहीं होता है. क्षुधा, प्यास इत्यादिसे पीडित पुरुषके मनमें स्त्रीके साथ सुरतक्रीडा करना, आलिंगन देना बगैरह क्रियाओंमें आदर नहीं रहता है, यह वात सुप्रसिद्ध ही है.
शंका-- टपवासादि तपोंमें प्रवृत्त हुए पुरुषको आहारके दर्शनसे और उसकी कथा सुननसे, उसको भक्षण करने की इच्छा उत्पन्न होती है. अतः तपोभावनासे इंद्रियोंका दमन होता है यह कहना अयोग्य है.