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________________ मूलाराधना आश्वास: १०५ INER असंक्लिष्टतपाशानसत्वैकत्वतिश्रिता ।। पंचधा भावना 'भाब्या भवभ्रमण भीरुणा ॥ १८९ ॥ विजयोदया-तयभाषणा तपसोऽभ्यासः । सुदभावणा ज्ञानस्य भावना । सत्तमावणा अभीग्यभायना । एगत्तमायणा एकत्वभावना । धिदिअलावभाविपावि य घृतिथलभावना चेति । असंकितिहावि पंचविधा असंक्लिश भावनाः पंचप्रकाराः । ननु च ताः पंचमात्यनास्तत्र किमुच्यते 'छट्टी य माचणा चेति' असंक्लि प्रभावनात्वसामान्यापेभया एकतामारोग्य पष्ठीयुनपते । विशेषरू पारेक्षया तपोभावनादिविवेकः । अत एव सूत्रकारोऽपि एकसां दर्शयति ' असंफिलिया वि पंचविहा' इति । असंष्टिभाषनाविकल्पगनुदिशतिमूलारा-सत्त अभीरत्वं । धिदिबलिदभावणा | धृतिः परमप्रसत्तिस्तस्या भावनाभ्यासः । छवी भावनाका वर्णन करते हैं अर्थ-तपका अभ्यास करना, ज्ञानका अभ्यास करना, निर्भयपनाका अभ्यास करना. मैं अकेलाही हूं ऐसा एकपनेकर अभ्यास करना और धृतिबल भावना एमी पांच असंक्लिष्ट भावनाये हैं. इस गाथामें पांच भावना ओंका उल्लेख किया है तथापि छठी मावनासे धीर मुनि रत्नत्रयमें विहार करते हैं ऐसा ऊपरकी माथामें कहा है यह विरुद्ध दीखता है. उत्तर - इन पांचो भावनाओंमें असैक्लिएपना है इस असंक्लिष्टत्व सामान्यकी अपेक्षासे इन पांचो भावना ओंमे एकपनाको आरोपित कर संक्लिष्ट पांच भावनाओं की अपेक्षासे यह भिन्न होनेसे इसको सामान्यतया छटी भावना ऐसा माथामें कहा है. विशेषताकी अपेक्षासे तपोभावना, श्रुतभावना वगैरे पांच भावनाये आचार्यने कही है. अतःविरोध नहीं है. तपोभावनासमाधेः कथमुपाय इस्यत्रायदे तवभावणाए पंचेंदियाणि दंताणि तस्स क्समेति ॥ इंदियजोगायरिओ समाधिकरणाणि सो कुणइ ॥ १८ ॥ दांसान्यक्षाणि गच्छन्ति तपोभावनया वशं ।।। विधानेनेन्द्रियाचार्यः समाधाने प्रवर्तते ।। १९०
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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