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मूलारावना
भाश्वास.
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कदादिभाव नानां स्वरूप निहाय सर्वगोत्पादनाय तत्फलं दर्शयति
मूलारा-विराधगो रबत्रयच्युत्तः । समाणो समानः सन् । भय उत्पन्न होबे इस वास्ते इन भावनाओंका फल दिखाते है
अर्थ- इन भावनाओंसे मुनि रत्नत्रयसे भ्रष्ट होकर देयोंमे जो कुगति है उनको प्राप्त होते हैं. उन देषदुर्गतीसे भी च्युत होकर अनंत भवसागरमें वे भ्रमण करेंगे. तात्पर्य-क्रोदपी पंगैरह भावनाओंसे कुदेवपना और अनंत संसारमें भ्रमण प्राप्त होता है.
एदाओ पंच बज्जिय इणमो छठीए विहरदे धीरो ॥ पंचतामेवा निगुत्तो णिसंगो सन्दसंगेसु ॥ १८६ ।। पंचेति भावनास्त्यक्त्वा संक्लिष्टः समितो यतिः॥
षष्ट्या प्रवर्तते गुप्तः संविग्नः संगवर्जितः ।। १८८॥ विजयोदया-पदाओ पंच बजिय पताः पंच भावनाः परित्यज्य । इणमो श्रयं यतिः धीरः । छडीए षष्ठया भावनया । पिहरदे प्रवर्तते । पष्ठयां भावनाय प्रवर्तितुं एवंभूतो पोग्यः इस्पाच-पंचसमियो समितिपंचकवृत्तिः । तिगुसो गुत्रियालंकृतः । णिस्तंगो संगरहितः। सम्बसंगेसु सर्वपरिग्रहेषु॥
ताः पंच त्यक्त्वा षष्ट्या या प्रवर्तते तामाचष्टेमूलारा-यमो अयं यतिः । ण्डीए, पष्ठ्या असंलिष्टभावनया । विहरदे प्रवर्तते । णिस्संगो आसक्तिमुक्तः ।
अर्थ-इन पांच भावनाओंका त्यागकर जो धीर मुनि पांच समिति और तीन गुप्तिओंका पालनकर मंपूर्ण परिग्रहोंग निःस्पृह रहते हैं वही छडी भावनाके आश्रयसे रत्नत्रयमें प्रवृत्त होते हैं.
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PASRAMBAPAR
का सा यष्टीभावना ? अत्रान
तवभावणा य सुदसत्तभावणेगत्तभावणे चेव ॥ घिदिबलविभावणाविय असंकिलिष्ठावि पंचविहा ॥ १८ ॥
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