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________________ मूलाराधना आश्वासा विजयोत्या-तामिभोगकोदुगभूकम्म-मंत्राभियोगक्रियां, कुम्हलोपदर्शनकियां, पालादीनां रक्षार्थ भूति कर्म च । पयुंजदे करोति यः । अभियोग भाषणं कुणा । अभियोग्या भावनां करोति । किं सर्व य मंत्राभियोगादी प्रवृत्ती नेत्याह । इहिरसमायहेतुं मताभियोगकोदुगाईकम्म जो पडजद सो अभियोगमावणे कुणा ॥ द्रव्यलाभम्य, मृष्टाशनस्य, सुखमय था इन मंत्राद्यभियोगकर्म प्रयुंके यः स एव अभियोग्यभावना करोति । नन यः स्वस्थ परस्य वा आयुरादिपरिक्षानार्थ मंत्राभियोगं कुर्वन् . धर्मप्रभावनार्थ कौतुकं उपदर्शयन, वैयावृत्य वा प्रवर्तकनीनि उद्यतः, शानदर्शन चारित्रपरिणामादरवर्तनाथ दुग्यतीति भाषः । आभियोग लनयनि मूलारा- मंत्राभियोग कुमार्यादिपात्रे भूतावेशकरण | कोदुग अकालवृष्ट्यादिकौतुइलोपदर्शनं, वशीकरणादिकं वा । भूदीकम्म बालादीनां रक्षार्थ भूतिकर्म भूतिमीडनकर्म वा 1 इठुरससादह व्यलाभमृष्टाहारसुखनिमित्तं । न पुनरायुरादिपरिशानधर्मप्रभावनावैयावृत्यार्थ मंत्रादिप्रयोगं कुर्वन रत्नत्रयादरवत्तया दुष्यतीति भावः ।। आभयोग्य भावना का वर्णन अर्थ-कुमारी बगरहमें भूतका आवेया उत्पन्न करना, अकालमें जलयुष्टि करके दिखाना ऐसे ही आश्रयं कारक प्रयोग करना जैस अमावास्या के दिन आकाश में लोगों को चंद्र दिखाना इत्यादि, किसी स्त्री या पुरुषको वश करना, उच्चाटन करना इत्यादि, बालकादिकाका रक्षण करने के लिये भूतिकर्म मंत्रप्रयोग करना अथवा भृतों की क्रीडा दिखाना ये सब क्रियायें यदि अपना ऐश्वर्य दिखानेके लिये, अथवा संपदा दिखानेके लिये, मिष्टाहारके लिये, किंवा इंद्रिय जनित सुखके लिये यदि मुनि करेगा तो उसकी यह अभि योग्य भाषना कही जायगी. इस भावना के प्रभाव से जीवका जन्मवाहन जाती के देवोंमें हो जाता है. यदि कोई मुनि निजकी अथवा दुसरों की आयु वगैरे जाननके लिये मंत्रप्रयोग करेगा, धर्मप्रभावनाके लिये यदि वह कौतुककारक अकाल वृष्टयादिक दिखावेगा अथवा इन मंत्रादिकोंसे मैं मुनिका वैयावृत्य करूंगा ऐसा अभिप्राय मनमें धारण कर यदि वह कौतुकादि करेगा तो दर्शन, ज्ञान चारित्र परिणामोम आदरसे प्रवास करनेवाला होनेसे दुषणीय नहीं है, १००
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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