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मूलाराधना
आश्वास
कार्य समझता है. मिध्यादृष्टि मनुष्योंको हितोपदेशादिक यदि वह करेगा तो उससे उसका कुछ फायदा नहीं है. बह शुभपरिणामोंपर चढ़ा हुआ है, मिथ्यात्विओको उपदेश देनसे उसके स्वार्थमें क्षति पोहोंचेगी. अतः उसको मिथ्यात्वीके साथ बोलना निषिद्ध है. जो मिथ्यादृष्टि तो है परंतु मंदकषायी है ऐसे पुरुषके साथ वह बोले अथवा नमी बोले और जो स्वजन है उनके साथ भी वह चोले अथवा न बोले. मिथ्यादृष्टि जन जब मंदकषायी होते हैं. तब मेरा वचन सुनकर सम्यग्दर्शन अणुव्रतादिक धारण करेंगे ऐसी यदि संभावना होगी तो उनके साथ बोलना काहए अन्यथा न बोलना हा श्रेयस्कर होगा.
उपगतशुभपरिणामस्य प्रवृत्तिक्रममाचशे
सिदिमारुहितु कारणपरिभुत्तं उवधिमणुवाधं सेज्जं ॥ परिकम्मादिउवहद बज्जित्ता विहरदि विदण्ह ॥ १७५ ॥ कार्याय स्वीकृतां शय्यां विमुग्धाचारपंडितः ।।
परिकर्मवी वृत्ते वर्तते देहनिस्पृहः ।। १७८॥ विजयोदया-सिदिमारुहितु शुभपरिणामश्रेणिमारुह्य । कारणभुतं किंचित्कारणमुपदिश्य श्रुतग्रहणं, परेषां वा श्रुतोपदेश, आचार्यादिवयावृत्त्यादिक, वा परिभुत्तं व्यवाहतं । उवाध परिग्रहमौषधं अतिरितमानसंयमोपकरणानिया। अणुधि पत्परिग्रहं । अम्बत्रेषदर्थवृत्तिः अनुदरा कन्येति यथा । कोसावनुपधिरत आह-'सेज सेविजविजदिणा' इति व्युत्पत्ती वसतिरुच्यते, तेन सज्ज वसति । परिकम्मादि उवदं यतयोऽत्र वसंतीति प्रमार्जनमलेपनादिपरिकर्मणा उपद्दत अयोग्यं । बज्जित्ता वर्जयित्वा । विहरदि बाचरति । चिदण्डू क्रमशः ॥
उपगतशुभपरिणामस्य प्रवृत्तिकममाचष्टे
मूलारा - सिदिमारुहितु शुभपरिणामश्रेणिमारुख । कारणपरिभुतं कारणेन श्रुतमहणशिष्योपदेशाचार्यवैयावृत्त्यादिप्रयोजनेन व्यवहृतं । उवधि परिप्रहमौषधं, अतिरिक्तपुस्तकादिकं वा । अणुषधि सेज षसतिलक्षणभीषत्परिमहं। परिकम्मादिउबदं यतय उपवसन्तीति क्रियमाणेन सम्मार्जनलेपनादिसंस्कारारंभेण अयोग्यं । विहरवि तपसरवि । विदण्डू
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