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________________ मूलाराधना भाव MAHAGAKARANterackeretare ३९२ arete m गणिनैव सम जस्पः कार्यार्थ यतिभिः परः ।। कुदृष्टिभिः सम मौनं शांतैस्स्वैश्च विकल्प्यते ॥ १७ ॥ विजयोन्या-गणिणा सह सावधारणमिदं गणिनैव सहासंलावो प्रक्षप्रतिवयनप्रबंधः, नान्यःसह घिरभाषण कार्यः । आचार्येण सह संलापः शुभपरिणामस्य हेनुरित्यनुज्ञायते । तर तु प्रमादिनो यत्किवियुवन्तोऽशुभपरिणाम विध्युः । कसं पर कार्य खं प्रति । सेसगेहि साधूहि शेयैः साधुभिः संभाषणं कार्य, न प्रबंधरूपा कथा कार्य । मोणं मौनमेव । से तस्य शुभपरिणामणीमामढस्य । मिच्छजणे मिथ्याट्रिज ने । स्वार्थ यद्धपरिकरस्य कि तेनानुगकारिणा हितोपदेशादिना । मज भाज्यं विकरप्यं मौन । सरणीसु मिथ्याष्टिष्वप्यूपांतेपु । साणे यस्पजनेन । मिथ्यारी अस्थामवस्थायां मदीरा या त्या सामर्शनादिकपिम एकनीति यद्यस्ति सभाबना बृयाधर्म न चेम्मानमेव ॥ इदानी शुभमाश्रितापचयापचयनिमित्तवृत्तिनिवृतिप्रनिपस्यर्थ आह - मूलारा-गणिणा आचार्येणैव । सलामो प्रमोत्तर गन्धरूपा गंकथा कर्तव्या । शुभपरिणामकलिमिनचाग । कज पद्धि कार्य स्वमुद्दिश्य । शेषसाधुभिःमहमभाषणमात्र कायन प्रबंधरूपा कथा। ने हि प्रमादितया यत्किंचिद् वन्नो शुभपरिणाम विदभ्यः। से तस्य शुमपरिणामणीमाढस्य । मिफलाणे मिश्यादृष्टिलोके अर्थात् रे । मणीसु संक्षिपु शिक्षाटापोपदेशानां प्राहकेषु मिथ्यादृष्टिध्वपि उपशान्तेषु इत्यर्थः । सजणे स्वजन झातिलोके मियादृष्टौ । अस्यामवस्थायां मम वाक्यमाकर्ण्य सम्यक्त्वादिकमिमे गृहान्तीति संभावना यद्यस्ति तदा धर्म ब्रूयानो चेन्मौनमेव कुर्यादिति तात्पर्य । तथा चान्ये पठन्ति-- गाणिनैव सम जल्पः कार्यार्थ यतिभिः परैः।। कुष्टिभिः सम मौनं शांतैः स्वैश्च विकत्यते ।। भावश्रितिके अपाय स्थानोंका त्याग करना चाहिये ऐसा आचार्य उत्तर गाथा कहते हैं. . अर्थ-सल्लेखना धारण करनेवाले युनिओंको आचार्यके साथही भापण करना चाहिये अर्थात् प्रश्नोत्तर रूप भाषण करना चाहिये. अन्य मुनिओंके साथ बहुत कालंतक भाषण करना अकल्याण करनेवाला है. आचार्यके साथ किया हुआ भाषण शुभपरिणामका हेतु होता है. इतर प्रमादी मुनि कुछभी बोलकर सल्लेखना धारकके मनमें अशुभ परिणामोंकी उत्पत्ति कर देंगे. कुछ कार्यके लिये इतर साधुओंके साथ अल्प भाषण करना चाहिये. जो मिथ्या दृष्टि है उसके साथ बोलना ही निषिद्ध है. मौन धारण करना ही श्रेयस्कर है, सल्लेखनाधारक आत्महित करना ही मुख्य SVEERCHANA | ३९२
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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