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________________ मुलाराधना আঁখি ____ अर्थ - मलेखना करनेवाले साधुन सब मखभावको छोडना चाहिये अर्थात् आसन, शयन और भोजन बगेरह विषयाम मन, वचन आर शरीरस आसक्ति का त्याग करना चाहिये तथा श्रद्धानादिपरिणामों का आश्रय लेकर बिहार करना चाहिये, अथीत रत्नत्रयमें हमेशा प्रवृत्त होना चाहिंय. शरीरपर विरक्ति को बढ़ाना चाहिये. यह शरीर प्रत्येक जन्ममें मिलता है इसलिये सुलभ है, निसार है, रत्नादि अपवित्र पदार्थों से भरा हुआ है अतः अपवित्र है. मिष्ट पदार्थों से पुष्ट करनेपर भी यह आत्माको रोगादिसे कष्ट देता है. अतः कृतम है. भारस्वरूप है, नाना प्रकारके रोगोंने इसमें अड्डा जमाया है, जरा और मरण से पीडित है और दुःखदायक है ऐसे दोपपूर्ण शरीरसे विरक्त होकर रत्नत्रयमें साधु विहार करें, दवसिदि भावसिदि अणिोगवियाणया विजाणंता ॥ ण खु उद्गमणकज्जे हेटिल्लपदं पसंसति ॥ १७३ ॥ द्रव्यभावथितिज्ञानाः संत्युत्तरपदोवताः ।। न ह्यधोऽधः प्रशंसति पदमूर्य पियासवः ॥ १७६ ।। विजयोदया-दवसिदि भावसिदि अणिोगचियाणया विजागंता इत्यस्मिनसूत्रे पनघटना | उगमणकले हेडिउपदे ण खु पससति ऊर्ध्वगमने कार्य यधोधःपादनिक्षेप नैव प्रशंसन्ति । विजागंता विशेषण जानंतो । को दवसिदि भानसिदि च दमयभावधियोः स्वरूप उपादेयधितिशाना इति यावत् । न केवल धितिमात्रज्ञाः किंतु अणुओगयियाण या अनुयोगदान्दः सामान्पवचनोऽपि इह चरणानुयोगवृत्तिर्ग्रहीतस्तेनायमर्थः आत्रागंगशाः अथवा चतुर्विधानुयोगका ध्रुतमाहात्म्यनः न प्रशंसति । पतदुर्ग भवति-शुभपरिणामचना नतिशय धव प्रचतिंतव्यं, न जघन्यप्रवाह निपत्ति. तव्यं, यतोऽतिशयितथुनज्ञानलोकाना यतयो निदन्ति जघन्यपरिणामान । कुतो? मंदायमानशुभपरिणामः फ्रमण न बहलविशालफर्मतिमिरमपाकर्तुमर्हति नाशाभिमुखः प्रदीप रच अशुभपरिणामसंततभूल भवनि । तेन कर्मणां स्थितिरनुभवश्च प्रकर्षमुपैति ततो व्यवस्थिता सैच वीर्यसंसारिता । समीचीनसानमारतप्रेरितः शुभपरिणामानलः प्रकृष्यमाणो पिशोषितकर्मपादपरसस्तमुन्मूलयतीति ।। उर्वगत्यूर्वमधिष्ठितशुभपरिणामस्य वदतिशय एव प्रतिपत्तिस्तत्वहः श्लाघ्यत प्रत्यावेदयति ।
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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