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________________ मूलाराधना ३८४ अधिक शास्त्र प्रवीण कौन है ? मेरेसे अधिक चास्त्रिका पालन किससे होता है ? मैं ही अच्छा तपस्वी हूँ ऐसा मुखसे वचनप्रयोग न करना मैं इन सुनिओसे उत्कृष्ट हूं ऐसा मनके द्वारा अभिमानको छोडना यह भाव मान कपाय विवेक है. वचन और शरीरके निमित्तसे मायाविवेक दो प्रकारका है. एक विशिष्ट व्यक्तिके विषयमें बोलता हुआ भी मानो अन्यके विषयमें ही बोल रहा हूं ऐसा दिखाना यह वचनसे माया है ऐसी मायाका त्याग करना अथवा कपटका उपदेश न करना, किंवा मैं माया न करूंगा न कराउंगा, करनेवालोंको अनुमतिदान नहीं करूंगा इत्यादि वचनको वाचामायाविवेक कहते हैं. शरीरसे एक कार्य करता हुआ भी मैं अन्यही कर रहा हूं ऐसा दिखाना यह शरीरकी माया है. इस मायाका त्याग करना कायमायाविवेक हैं. लोभ कपाय विवेक- जिस पदार्थ में लोभ हैं उसके तरफ अपना हाथ पसारना, जहां वह पदार्थ है यह स्थान सुरक्षित रखना, यदि कोई मनुष्य उस वस्तु को लेनेकी इच्छा करता हुआ दीखे तो शरीरसे निषेध करना, हाथ की सहनानी से मना करना अथवा मस्तक को हिलाकर निषेध करना इत्यादिक शरीरक्रिया न करना यह कायलोभ विवेक है. शरीरसे द्रव्य को न उठाना यह भी कायलोभ विवेक है. यह मेरी वस्तु है, य ग्राम घर वगैरह पदार्थ मेरे हैं. मैं इनका स्वामी हूं ऐसा वचनोचार न करना यह भी चाचालोभविवेक है. मैं किसका स्वामी नहीं हूं. मेरी कुछ भी वस्तु नहीं ऐसा वचनोच्चार करना यह भी चाचा लोभ विवेक है. यह मेरा है ऐसी जो मोहसे उत्पन्न होनेवाली परिणति वह भावलोभ है परंतु इस परिणति को न होने देना यह भाव लोभविवेक है. अहवा सरीरसेज्जा संथारुवहणि मत्तपाणस्स ॥ वेज्जावञ्चकराण य होइ विवेगो तहा चैव ॥ १६९ ॥ सोsथवा पंचधा शय्यासंस्तरोपधिगोचरः ॥ वैयावृत्यकराहारपानविग्रह संश्रयः ॥ १७१ ॥ अश्वासः ३ ३८४ r
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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