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आश्वास
मूलाराधना
अश्रोपधित्यागमाराधकस्य विधेयतया गाथानवकेनोपनिशति तत्र चादी द्रव्योपथित्याग गाथाद्वगेनाह
मूलारा-मज़ममा कमंडलुपिच्छमात्र । मेस पिलान्तारकामा नन्तरम् । तदानीमन्यस्य संयममाघनत्याभाषात । अथवा पुस्तकादिक शेपशनानोक्यते । पाहादि योग या यानि । विसुजलेम्सी लोभापायाननुरांजितयोगत्रवृत्तिकः ।।
उअधि व जहण इन दो पदोंका आगेके प्रबंधसे ग्रंथकार वर्णन करते हैं
अर्थ जिस उपकरणसे मंयम माध्य होता है उतना ही परिग्रह छोडकर बाकीका परिग्रह विशुद्ध लेश्यावान और कमक अपायाका अन्वेषण करनेवाला साधु गोगत्रयंस छोडना है. नात्पर्य-मल्लेखनाके समय माकी योगप्रवृत्ति लोभकपापसे अनुरंजित नहीं होती है. अतः वह एकही पिच्छिका और एकही कमंडलु रखता है. क्योंकि उसमे हि उसका संयममाधन होता है. दुसरा कमंडल और दूसरी पिच्छिका उसको मयमसावन में कारण नहीं है. जिसमें सरकारसम राम सिसोश नही गया है. अवशिष्ट ज्ञानोपकरण शास्त्र भी उस समय परिग्रह माना गया है. उनका भी वह साधु त्याग करता है. उसकी निर्लोभवृत्ति उस समय सर्व परिग्रहोंका त्याग कराती है.
बसल्यादिकं तर्हि स्याज्यतया नोपदिशमिति धाशंकिते तत्त्यागमुपदिशति--
अप्पपरियम्म उवधि बहुपरियम्मं च दोवि वज्जेइ सेज्जा संथारादी उस्सग्गपदं गवसतो ॥ १६२ ।। साधुर्गयेषयन्मुक्तिं शुद्धलेइयो महाममाः ।।
विमुंचत्युपधि सर्वमरूपानल्पपरिफ्रियम् ॥ १७४ ।। विसकोदया- अप्पपरियम्म उवधि अल्पपरिकर्म निरीक्षणप्रमार्जनविधूननादिकं यस्मिन्नं परिग्रह । बहु