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________________ आवास भुलाराधना ३६६ | - - विषयमें शंका हो जैसे यह मार्ग कहां चला जाता है इसका यदि निर्णय न हो तो, उपकरणादिक योग्य है या अयोग्य हैं इसका निर्णय होनेके लिये, और शय्याधरका घर और बसतिकाके स्वामी इस विषयमें वे प्रश्न करते हैं. (वसतिकाको चनानवाला, उसकी मरम्मत करानेवाला और यहां आप ठहरो ऐसा कहकर वसतिका देनेवाला इन तीनोंको शय्याधर कहते हैं.) ग्रामके बाहर, श्मशानमें, शून्य घरमें, देवगृहमें, गुहामें, प्रवासी रहनेके घरमें अर्थात् धर्मशालामें और झाडके पोलमें एकवार अनुज्ञा लेकर रहते हैं. आप कोन हैं, आप कहांसे आये हैं, आप किस देशको जानेवाले हैं. यहां आप कितने दिन ठहरेंगे, आप कितने जन है, ऐसे प्रश्न करनेपर मैं मुनि हूं या एक. ही उत्तर देते हैं, अन्यसमयमें ये मौन धारण करते हैं. इस स्थानम तुम चले जाओ, हमको गह जगह दो, इस घरको संभालो या बाद कोई भापण तो उस स्थानमें वे रहने नहीं है, तीसर प्रहरमं आहारको जान है उस समय भिक्षा मिले अथवा न मिल हमेशा दो गगनितक विहार करते हैं. घृष्टि, जोरग बेहनवाली हवा इत्यादिकोसें यदि बाधा हो जहां तक गमन किया है वहां ही ये स्थिर रहते हैं. च्याघ्रादि प्राणी, दुष्ट बैल बंगरह पश आनेपर यदिथे भद्र हो वा पारमान जमीन व पीठं हटते हैं. पदि दुष्ट हो तो एक पैर भी य इटने नही. वहो ही स्थिर बंद होते हैं. नाम चल यदि गई हो अथवा पायमें यदि कांटा चुभ गया हो तो स्वयं व मुनि निकालते नहीं है. यदि वगरे कोई पुरुष निकाले सो मौन रहते है. नीसरे प्रहरमें ही नियमसे भिक्षाको जाते हैं. जिस क्षेत्रमें छा भिक्षा अपुनरूरत होती है यह क्षेत्र रहने के लिये योग्य समझते हैं, पाकीका क्षेत्र अयोग्य समझते हैं, क्षत्र, तीर्थ, काल, चारित्र, पर्याय, श्रुत, बद, लेश्या, ध्यान संहनन, संस्थान शरीरकी दीर्घता, आयुष्य, लब्धि, अतिशय ज्ञानोत्पति और सिद्धि, इतने नियोग यहां वर्णन करने योग्य है ऐमा समझना चाहिये. ये मुनि क्षेत्रकी अपेक्षासे भरत और ऐरावत क्षेत्रमें होते हैं. तीर्थकी अपेक्षासे पहिले तीर्थकर व अन्तिम तीर्थकरके समय होते है. कालकी अपेक्षासे उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी कालमें होते हैं, चारित्रकी अपेक्षासे उनको छेदोपस्थापना चारित्र होता है. प्रथम तीर्थकरके समयमें इनके शरीरकी अवस्था देशोनपूर्व कोटी रहती है, और अन्तिम तीर्थकरके समयमें एकसो बीस वर्णकी अवस्था होती हैं, जन्मतः तीस वर्षतक भोगोपभोगका सुख-अनुभव लेकर मुनिपर्याय में उनीस वर्ष व्यतीत होते हैं. इनको दशपूर्वीका ज्ञान होता है. वेदसे ये पुरुषवेदी होते हैं. लेण्याकी अपेक्षासे इनको तेजो लेश्या, पालेश्या और शुक्ल लेश्या होती है. ध्यानकी अपेक्षासे उनको धर्मध्यान - - Na-24 - - ६६
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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