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भूलाराधना
आभार
कर आलंदविधि करनेवाले मुनिओंका यह स्वरूप दिखाया है.
अब गच्छप्रतिबद्धालंदकविधिका विवेचन करते हैं
गच्छसे निकलकर बाहर एक योजन और एक कोसपर ये मुनि विहार करते हैं. शक्तिमान आचार्य क्षेत्रक बाहर जाकर उनको अर्थपदका अध्ययन कराते हैं. अथवा आलंदविधि करनेवालों मेंसे समर्थ मुनि आकर उनके पास अध्ययन करते हैं. एक, दो या तीन मुनि जो कि परिधान, धारणा वगैरह गुणोंसे परिपूर्ण हैं वे गुरुके पास आते हैं. प्रश्नका कार्य करनेपर अपने क्षेत्र में जाकर आहार ग्रहण करते हैं. शक्तिरहित आचार्य गछमें सूत्रार्थ पौरुषी करके गांवके निकट अनमें जाकर यत्नसे अर्थषदका अध्यापन करते हैं, अथवा अपने आश्रय स्थानमें ही वे इतर शिप्याको दूर करके गकको पढाने हैं. यदि गच्छ क्षेत्रांतरको चला जायगा तो आनंदविधि करनेवाले मुनि मी आचार्यका अनुज्ञा संकर क्षमाताको जाते हैं. जब गच्छनिवासी क्षेत्रकी शुद्धि करनेका प्रयत्न करते हैं अथान कोनगा क्षेत्र योग्य है इसका यदि अन्वेषण करते है तो आलंदविधि करनेवाले दो मुनि भी उस क्षेत्र गागम जाने हैं. इस प्रकार यह अथालंदविधिका विवेचन पूर्ण हुआ.
अब परिहाराविधिका विवचन करत है
जिनवाल्पको धारण करने में असमर्थ ऐसे पनिराज परिहारसंयमका भार धारण करते हैं. अपनी शक्ति, धीप, आयुष्य, उपसगादिक विघ्न जानकर य जिनेन्द्र भगवान के पास जाते हैं. विनय कर और हान जोड कर है भगवस ! हम आपकी आज्ञाम परिवारसंयम धारण करनकी इछा करते है. उनका यह भाषण सुन कर जिनको उत्कृष्ट का था। कंबलदान उत्पन्न होगा. अथवा जिनको विघ्न उपस्थित होगा उनको जिनभगवान रोकते हैं. जिनको जिननावानने आज्ञा दी है व मुनि निःशग होकर प्रशस्त स्थान में जाकर लोच कर, उत्तम निश्चयसेगुरुके पाम आलोचना करते हैं और व्रतोंको विशुद्ध करते हैं. परिहार संयमके अभिमुख हुए मुनिआमसे एकको मूदिय में कल्पस्थित आनार्य पदवीपर स्थापन करते है. वह उस गणमें प्रमाण माना जाता है. वह गणकी आलोचना सुनकर शुद्धि करता है,
कल्पास्थित आचार्यको छोडकर शेष मुनिओंमें अर्धमुनि प्रथम पारिहारसंथम ग्रहण करते हैं. और बाकी के मुनि नंतर परिहारसंयमको ग्रहण करते हैं अतः उनको अनुपरिहारफ कहते हैं. इस रीतिसे जो पीछेस संयम