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गृलाराधना
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गमनमें रुकावट उपस्थित हो तो वहां ही ठहरते हैं. आगे जात नहीं. व्याव वगरह प्राणी अथवा दुष्ट पशु यदि रास्तमें आये तो उस रास्तेसे हट जाते हैं अथवा इटते नहीं है. पायमें यदि कांदा चुभ गया, आखोंमें यदि धूलीके कण गये तो व निकालते हैं अथवा नहीं भी, रद्ध धैर्ययुक्त ऐसे वे मुनि मिथ्यात्वचाराधना व आत्मविराधना और अन्य दोषोंका परिहार करते है अथवा नहीं है. तृतीययाममें भिक्षाके लिये ये उतरते हैं-आन है, कृपण, यामक पशु पक्षी, ये सब चले जानेपर आहार लेनकी इच्छा करते हैं और मौन धारण करते हैं. एक, दोन तीन, चार अथवा पांच गोचा जिस क्षेत्र में होती है उस क्षेत्रमें आलंदिका योग करते है. [ जिससे पाणिपात्रम भोजन करनवाला मिथ्यावका त्याग नहीं करना है. उसस लपाहार अथवा अलपाहार का भक्षण कर उसका व प्रक्षालन करत है । इसका अभिप्राय ध्यानमें आना नहीं है. ]
धमापदेवा पारनमें यदि कोई पुरुष आपके घरगणमूलमें मैं दीक्षा लेनेकी इच्छा करता ऐसा कहे तो भी उसको दीक्षा दनका विचार य मनसे भी करते नहीं फिर वचन और शरीर के द्वारा वे उसको क्यों दीक्षा देंगे? उनको साध करनेवाले अन्य सुनि समपदेश देकर शिवसात अथवा मुंडन जिसने किया है ऐसे उस पुरुषोंको आचार्यके सन्निध ले जाते हैं,
क्षेत्रकी अपेक्षासे ये अथालंद विधि करनेवाले मुनि एकसो सत्तर कर्मभूभीमें होते है. कालकी अपेक्षासे देखा जाय तो हमेशा होते हैं. चारित्री अपेक्षासे इनको सामायिक और छेदोपस्थान ऐसे दो चारित्र होते हैं. तीथकी अपेक्षास सर्व तीर्थकरोंके तीर्थ में ये उत्पन्न होते हैं, जन्मसे तीस वर्ष तक भोगों को भोगकर मुनि अवस्था में उन्नीस वर्ष तक रहते हैं. अनंतर अथालंदक विधिको धारण करते हैं, ज्ञानकी अपेक्षासे इनको नो या दस पूर्वोका शान रहता है. वेद की अपेक्षासे ये पुरुषवेदी या नपुंसकवेदी रहते हैं. लेश्याकी अपेक्षासे ये पन व शुक्ल लेश्याके धारक होते हैं. ध्यानकी अपेक्षासे ये धर्मध्यानी होते हैं, संस्थानकी अपेक्षासे छहों संस्थानामसे किसी एक संस्थानके धारक होते हैं, इनके शरीरका प्रमाण कुछ कम सात हाथसे पांचोधनुष्यतक रहता है. कालकी अपेक्षासे जघन्य आयुध भिन्नमूहत और उत्कए आयुःस्थिति आलंद क विधि धारण करने के पूर्व जितना आयुष्य व्यतीत हुआ है वह पर्व कोटिमें कम करना यह उत्कृर स्थिति समझनी चाहिये. उनको विक्रियाऋद्धि. चारण ऋद्धि क्षीरासावित्व अद्धि इत्यादि ऋद्धियां प्राप्त होती है. परंतु विराग होनसे उनका सेवन नहीं करने हैं. गच्छग निकल