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________________ लाराधना आधासा करते हैं. शरीरसंस्कारको छोड़ देते हैं. और परिपहों को सहते हैं. हमारमें संयमाचरण करनेके लिये योग्य मनोबल है ऐसा विचार कर तीन वा पांन मुनि मिलकर प्रवृत्ति करते हैं, रोगसे अथवा आघातसे वेदना उत्पन्न हो तो उसका इलाज नहीं करते हैं, नपसे जब आंतशय थक जाते हैं. तब अपने सहायकोंका हस्त-हाथका आश्रय लेते है. वाचना छानादि काका व न्याग करते हैं. अहोरात्र में कदाचितभी नहीं गोते है, एकचित्त होकर ध्यानमें प्रयत्न करत है. यदि बलात् निद्रा आ जाब तो वे प्रतिज्ञा नहीं करते है अर्थात मै सोउंगाही नहीं ऐसी प्रतिज्ञा नहीं करते है. अथात् रात्रमें सोते भी है. स्वाध्यायकालमें प्रतिलेखनादि क्रिया उनको नहीं है. श्मशानमें भी उनके लिये ध्यानका निषेध नहीं है. सामायिकादिक अवश्यकॉमें चे प्रयत्न करते हैं. प्रातःकाल और सायंकालमें पिच्छिका कमंडलु इनका वे संशोधन करते हैं. जिनमदिर, वसतिका वगैरह सस्वामिक हो अर्थात् उनके कोई मालिक हो तो उनकी अनुज्ञासे वे उसमें रहते हैं. यदि इनके स्वामीका पता मालूम न हो तो जिसके ये जिनमंदिरादिक हैं वे हमको ठहरनेकी अनुज्ञा देने' ऐसा कहकर उनमें ठहरते है. सहसा अतिचार या अशुभ परिणाम हो गया तो 'मिथ्या मे दुष्कृत' ऐसा बोलकर अतिचार व अशुभपरिणामसे निवृत्त होते हैं. दश प्रकारके ममाचारों व प्रवृत्ति करते है. उनकी गंधक साथ दान, ग्रहण, विनय, आपस में बोलना ये क्रियायें नहीं होती हैं. किसी कार्यकी अपेक्षासे उनमेंसे एक मनि भापण करते हैं. जिस क्षेत्र में सधर्मा मुनि होंगे उस क्षेत्र में चे प्रवेश करते नहीं है. मौनका नियम होते हुए भी वे रास्ता पूछते हैं, किसी पदार्थ शंका उत्पन हुई हो तो उसके निराफरणार्थ प्रश्न करते है. वमतिकाका जो स्वामी है उसके घरका पता पूछते है. इस तराधीन विषयों में ही वे बोलने है. गांवकं बाहर जहाँ प्रयासी लोक ठहरते हैं ऐसे स्थानमें कम्पस्थित मुनि यदि अनुसाद मो ठहरते है. पण, पक्षी वगैरह प्राणियास जहां ध्यानमें विन होता है वह स्थान चे छोडते हैं. आप कोन है ? आप कहांसे आये है? आप कहाँ जा रहे है, आप यहां कितने समयतक ठहरेंगे, आप कितने मुनि हैं ऐसा पूछने पर मैं श्रमण अर्थात मुनि है इतना एक ही प्रत्युनर दने हैं. अथवा इनर मुनि मौन धारण करते हैं. इस स्थानसे हटो, मेरको यहां रहनेके लिये स्थान दो, मरे परका रक्षण करो. इस तरहसे यदि कोई गृहस्थादिक उनको बाहर ठहरते हुये भी बोले तो वहांसे भी चे चल जाते है. जिसमें वे ठहरे हैं उस घरको यदि आग लगी तो वे यहांसे गमन नहीं करते है. अथवा गमन करते हैं. आहार यदि नहीं मिला तो तीसरे प्रहरमें दो गम्युति प्रमाण मार्ग वे जाते हैं, यदि बढे वायुसे, महाराष्टिसे
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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