SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 369
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ FOR मूलाराधना आश्वास भिक्षाका समय, और क्षुधाका समय जानकर कुछ वृत्तिपरिसंख्यानादि नियम ग्रह णकर ग्राम या नगर में ईर्यासमितीये प्रवेश करे, भोजनकालका प्रमाण जानकर ग्रामादिकसे निकले. जिनमंदिर अथवा यतिका निवास अ नि वसतिका मट इनमें प्रवेश कर प्रदक्षिणा करें. उस समय निसीधिका सदका उच्चारण करे. और जब वहांसे लौटने यमग अमीधिका शब्दोच्चार करे. इसी तरह स्थान, भोजन, शयन, गमनादि क्रिया करते समय भी मुनिओंको प्रयत्नपूर्वक प्रवृत्ति करनी चाहिये, सब आचारक्रम मैं जानता हूं, मैं गुरुकुलवासी हूं, सूत्रका अर्थ मैं जानता हूं. आचारक्रम अथवा सूत्रार्थ अन्यसे जाननेकी मरेको जरूरत नहीं है. ऐसा अभिमान न धारण करे. शिक्षायामुगलों मवेदिसा.... कंठगदेहिं वि पाणेहिं साहुणा आगमो हु कादब्वो ॥ सुत्तस्स य अत्थस्स य सामाचारी जय तहेव ॥ १५१ ।। कर्तव्या यझतः शिक्षा प्राणैः कंठगतैरपि ॥ आगमार्थसमाचारप्रभृतीनां तपस्विना ॥१५३ ।। विजयोदया-कंठगदेहिं वीस्यादिना । कंठगतैः प्राणैः सह वर्तमानेनापि साधुना आगमशिक्षा कर्वव्यैव सूचस्यार्थस्य सामाचारस्य । कंठगदेहिं वि पाणेहि साहुणा आगमो हु कादयो। मुत्तस्स य अत्यस्स य सामाचारी अध तधेव ॥ २ ॥ मूलारा-इत्येषापि गाथा भिन्नैव ।। अनियतवास करनेवाले मुनीने आगमाभ्यास करना चाहिये अर्थ--प्राणकठमें आगये हो तो भी मुनिका आगमका अध्ययन करना अवश्य कार्य है, जैसे वह सूत्र अर्थ व आचारोंका अध्ययन करता है वैसे आगमका भी अध्ययन करे,
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy