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________________ मूलाराधना आधास । होगा. किंवा भागते समय गढमें गिरकर मृत्युवश होंगे जिन्होंने भिक्षा ली है ऐसे अन्यसाधु घरसे बाहर निकलते हुये देखकर अथवा गृहस्थांके द्वारा उनका निराकरण किया हुआ देखकर वा सुनकर तदनंतर प्रवेश करना चाहिये यदि मुनिरर्थ इसका विचार न कर श्रावकगृहमें प्रवेश करें तो बहुत लोक आये है ऐसा समझकर दान देनमें असमर्थ होकर किसी को भी दान न देंगे. अतः विचार के बिना प्रवेश करना लाभांतरायका कारण होता है. दसरे भिक्षा मांगनेवाले पाखंडी साधु जैन साधु प्रवेश करनेपर हमने कुछ मिलने की आशासे यहां प्रवेश किया है यह मुनि क्यों यहां आया है एसा विचार मनमें लाकर निर्भर्सना तिरस्कारादिक करेंगे. इतर भिक्षा मांगनेयाले साधु जहां खड़े होकर भिक्षा या अकरते है अथक मिसाननरहुये साधुको गृहस्थ दान देते है उतना ही भूप्रदेशतक साधु प्रवेश करे. गृहके अभ्यंतर भागमें प्रवेश न करें. गृहस्थाने तिष्ठो, प्रवेश करो ऐसा कहने पर भी अंधकारमें साधुको प्रवेश करना उचित नहीं. अन्यथा उस स्थावर जीवोंका नाश होगा. द्वारादिकोंका उल्लंघन कर जानसे गृहस्थ कुपित होगे. घरमें बकरा जथवा गायका बछडा हो तो उसको लांघकर प्रवेश न करे. अन्यथा वे डरके मारे पलायन करेंगे वा साधुको गिरा देंगे, दीर्घता व चौडाइसे रहित द्वारमें प्रवेश करनेसे शरीरको व्यथा होगी, अंगोंको संकुचित करके जाना पडेगा. नीचे के अवयवोंको पसारकर यदि साधु प्रवेश करेगा तो गृहस्थ कुपित होंगे अथ हास्य करेंगे. इससे साधुको आत्मविराधना व मिथ्यात्वाराधना होगी. संकुचित द्वारसे गमन करते समय उसके समीप रहनेवाले जीवोंको पीडा होगी, अपने अवयवों का महन होगा. यदि ऊपर साधु न देखे तो सीके में खखे हुये पात्रोंको धका लगेगा अतः साधु ऊपर और चारो तरफ देखकर प्रवेश करे. तत्काल लेपी गई, पानी के छिडकावसे गीली, हरा तृण, पुष्प, फल, पत्रादिक जिसके उपर फैले हुए हैं एसी, सचित्त मसि बुक्त, बहुत छिद्रोंसे युक्त, जहां उस जीव फिर रहे है, जहां गृहस्थों के भोजन लिय रंगावली रची है, देवताओं की स्थापनासे युक्त, अनेक लोक जहा बेटे हैं, जहां आसन और शय्या रख है, जहां लोक बैठे हैं और मोय है, जो मूत्र, रक्त, विष्टादिस अपवित्र यनी है ऐसी भूमीमें साधु प्रवेश न करे. अन्यथा उस के संयममें विराधना होगी व मिथ्यात्वाराधनाका दोष लगेगा। साथ भोजन कर जब निकलेगा वय धीरे धीरे गमन करे, नम्र होकर चले. नमस्कार करनेवालाको योग्य आशीर्वाद दवे, इस तरह स्वस्थानगमन करें, REATE
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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