________________
मूलाराधना
आश्चार
३४६
रहता है. इस लिये आचार्योंके अनेक प्रकार होते हैं. आचार्य जिस तरहसे आचारमें प्रवृत्ति करते हैं वह सब स्मरणमें रखकर वैसा आचरण करता हुआ देशांतरविहारी साधु आचारमें कुशल हो जाता है. उस आचारक्रमका टीका कार अपराजितमरि वर्णन करते हैं ----
वसतिकासे बाहर जानकी साधुको जब इच्छा होती है तब वह शीतलस्थानसे अथवा उष्णस्थानसे बाहर जाने के पूर्व में अपने सर्व अंग पिच्छिकासे साफ करे जब वह साधु वसतिका में प्रवेश करेगा उस समयमें भी अपना अंग पिच्छिकासे साफ कर ही घसतिकामें प्रवेश करे. यह अंग पोछनकी क्रिया करनी चाहिये. क्यों? इसका शुगर । ई
शीत और उष्ण जंतुओंको बाधा न हो इसलिये शरीर प्रमार्जन पिच्छिकास करना पडता है. अथवा सफेत भूमि या लालरंगकी भूमिमें प्रवेश करना हो अथवा एक भूमिसे निकलकर दूसरे भूमिमें प्रवेश करना हो तो कटिमदेशसे नीचेवक सर्व अवयव पिच्छिकासे प्रमार्जित करना चाहिये. ऐसी क्रिया नहीं करनेसे विरुद्ध योनि संक्रमसे पृथ्वीकायिक जीव और प्रसकायिक जीवाफी बाधा होगी. जलमें प्रवेश करने के पूर्वसमय साधु पांव हाथ, वगैरह अवयवों में लगे हुए सचिन और अचित्त धुली को अपनी पिच्छिकास दर करे. अनंतर जल प्रवा करे. जलस याहर आनेपर जब तक पांव न सूरख जायेंगे उतने कालतकबह जलके समीप ही खड़ा हो जावं. पांच सूबने पर आगे विहार कर. चटी नदीको उलंयकर यदि जानका प्रसंग आये तो नदीके प्रथम वटपर सिद्धवंदना करे जबतक दुसरे तटकी प्राप्ति न होगी तबतक मेने शरीर, भोजन और उपकरणका त्याग किया है ऐसा प्रत्याख्यान स्वीकारना चाहिये. मनमें एकाग्रता धारण कर नौका वगैरह पर आरूढ होवे. दसरे तटपर पोहोंचनेके अनंतर उसके अतिचार नाशार्थ कायोत्सर्गसे खडे होना चाहिय, प्रवेश करने पर अथवा वहांसे बाहर निकलनपर भी यहीं आचार करना चाहिये.
भिक्षाके लिय थावकके घरमें प्रवेश करते समय प्रथमतः इस घरमें बैल, भैंस, प्रमूत गाय, दुष्ट कुत्ता, भिक्षा मांगनेवाले साधु है या नहीं यह अवलोकन करे यदि न होंग तो प्रवेश करे. अथवा उपर्युक्त प्राणी साधुके प्रवेश करनेसे मययुत्त न हो तो यहांसे सावध रहकर प्रवेश करे. यदि वे प्राणी भययुक्त होंगे तो उनसे यतीको बाधा होगी. इधर उधर के प्राणी दाँडंगतो त्रसजीबोका, स्थावरोंका नाश होगा. अथवा साधुके प्रवेशसे उनको क्लेश
KHAANIगया
.