________________
गुलाराधना ३५१
सोदा भवति । चिरमेक वसतो जनः परिचयादाक्षिण्याद्वा भित्रां प्रयच्छतीति व महापरिधमः । सी उ शोणपर्श दुःखे दह गृहाने । तदनुभवनं संक्लेशरहितमाचिनां सोदं भवति । सज्जा यशाच वसतिः । अपमिमेदं सारहिता अधिसिदा सोढा भवति । विहरणेण विविदेशमनेन ।
भावनां भावयति---
मूलाराचरिया गमनजन्यं दुःखमित्यर्थः । छुवा अपरिचिते पेशे संयतः पूर्वमध्यासिते अस्पधान्यसंग्रहे च योग्यभिअाया अलाभादुपजाता क्षुद्धेदना | सीदं शीतस्पर्शनजं दुःखं । अधियासिया असेक्लेशेन सोढा । सेज्जा वसतिः । अपचिबद्धा ममेदंभावरहिता ।
भावना - परीषद सहन करना यह भावना शब्दका अर्थ है.
इसका विवेचन इस प्रकार है
अर्ध-चर्या –
उत्पन्न हुए दुःखको चर्य कहते हैं. जूता अथवा अन्य पदार्थसे जिसने अपने पायका रक्षण नहीं किया है, तथा गमन करते समय तीक्ष्ण शर्करा पत्थर, कांटे इत्यादिकोंके द्वारा जिसके चरण व्यथित हो रहे हैं. उष्णधूलीसे जिसके पैर संतप्त हुए हैं, ऐसे मुनिको जो दुःख उत्पन्न होता है वह मुनि विना संक्केश परिणामसे सहन करते हैं, यह वर्या भावना हैं.
क्षुधा भावना - जहां मुनिओने निवास नहीं किया था ऐसे अपरिचित तथा अल्प धान्य के संग्रह युक्त देश में योग्य भिक्षा न मिलनेसे जो भूखसे वेदना होती है वह सहन करना क्षुवाचर्या कहलाती है. बहुत दिनपर्यंत एकस्थान में ही निवास करनेसे सव श्रावकों के साथ परिचय होता है इस लिये वह भिक्षा मिलने महान परिश्रम नहीं होता है. संक्लेश परिणाम न करके शीतसे और उष्ण से होनेवाले दुःखोंको सहन करना यह शीतोष्ण चर्या हैं, वसतिका के ऊपर भी यह मेरी है ऐसा ममत्वभाव उत्पन्न नहीं होता है. अनियत विहार करनेसे ये उपर्युक्त फायदे होते हैं.
णाणादे से कुसलो णाणादेसे गढ़ाण सत्थाणं ||
अभिलाव अत्थकुसलो होदि य देसप्पवेसेण ॥ १४८ ॥
अश्वासः
२
३४१