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________________ अध्याय माराधना SA उद्योतन-शंकाकांक्षादि दोषोंको दूर करना यह उद्योतन है इसको सम्यक्त्वाराधना कहते हैं. द्वादशांगमें जीवादितत्वोंका जो स्वरूप कहा हुवा है वह यही अब अन्य है ऐसी जो शंका मनमें उत्पन्न होती है-जिसको संशय भी कहते हैं उसको अपने हृदय से दूर करना इसको उद्योतन कहते हैं. जैनसिद्धांतको भविरुद्ध युक्तियों द्वारा ओर आगमवचनसे जीपादिक वस्तुओंकायही स्वरूप है ऐसा ही ऐसा निधपका संपादिकदोषों को दूर करना चाहिए. जो जिसकी विरुद्ध मील लो उत्पादोधी है उससे उलटी वस्तुं यहां नहीं रह सकती. जैसे शीतपसे युक्त चंद्रमें उसकी विरोधी उष्णता अपने पैर नहीं जमा सक्ती, संशयके विरुद्ध निधी है. वह जहां उत्पन्न होता है वहाँ संशय कैसा रहेगा ! निश्चपसे विरोध करता हुआ बद संशय पिलाल टिक नही सकता. शंशाकाक्षादिक दोपोंका स्वरूप और उनका निरसन आगे दर्शनाराधनाके प्रकरण में आचार्य स्वयं लिखेंगे ही. निश्चय न होना अथवा उलटा शान होना यह ज्ञानका मल है. जर निश्चय होता है तब अनिश्वर नहीं रहता है. यथार्थ वस्तुज्ञान होनेसे विपरीतता चली जाती है. यह कानका उद्योतन है. अर्थात् ज्ञानके अनिश्चय विपर्यासादि दाप दूर करना ज्ञानका उद्योतन है, भावनाओंका त्याग होना चारित्रका मल है. अर्थात् भाराओम तत्पर होना ही चारित्रका उद्योतन होता है. असंघम परिणाम होना यह ताका कलंक ई, संयम भावनामें तत्पर रहकर उस कलंकको हराकर तथा निर्मल वगना एह तपका उद्योतन है. ___उद्यान--उत्कृष्टं ययनं उययन अर्थात् उत्कृष्ट मिश्रण होना उग्रवन है. आत्माको माया दर्शनादर परिणति होल उद्यान शब्द का अर्थ है. का--उर्वक यु धातुसे उग्रपन शब्द बना. उसका मिश्रग ऐसा अर्थ है. मिश्रग और संयुक्तपन । दामो समनार्थक है. जैसे गुडस मिश्रित पाना है. अर्थात् गुडसंयुक्त धाना है ऐसा अभिप्राय होता है. विभिन पदार्थ आगसमें मिल जाना उ.पको संयोग कहते हैं परन्तु सम्यग्दर्शनादिक गुण आत्माले भिम नहीं है. आत्मा तद्रूप है. वह उससे विकल नहीं है अर्थात् सम्यग्दर्शनादिसे भिन्न उसका और रूप नहीं है. अर्थात् सम्पग्दर्शनादिकसे उसका संयोग होना यह उधक्नका अर्थ यहां योग्य नहीं दीखता. उत्तर-विशेष शब्दसे जो विशिष्ट अर्थ कहा गया है वह भी उलमणसे सामान्य अर्थ लामो माना जाता
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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