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________________ राखन) १७ है. जैसे 'काकेभ्यो रक्ष्यतां सर्पिः ' अर्थात् कौवोंसे घृतका रक्षण करो यहां कौवा शब्द विशिष्टार्थवाचक होने पर भी 'उसका उपघातक सामान्य ही अर्थ अनुभवमें आता है. अर्थात् घृतको बिगाडनेवाले सब प्राणियोंका कांक शब्द वाचक हो जाता है, वैसा यहांपर उद्यवन शब्दका सामान्य संबंध ऐसा अर्थ समझना अर्थात् वारंवार सम्यग्दर्शन गुणोंसे आत्मा परिणत होजाना यह उधवन शब्दका अर्थ है, निर्वहण - सम्यग्दर्शनादिगुणोंको निराकुलतासे धारण करना अर्थात् परीपहादिक प्राप्त हो जानेपर भी व्याकुलचित्त न होकर दर्शनादि परिणतीमें तत्पर रहना, उससे च्युत न होना यह निर्वहण शब्दका अर्थ है. साधन - अन्य कार्यके तरफ ज्ञानोपयोग लगनेसे तिरोहित हुए दर्शनादिपरिणामको उत्पन्न करना. अर्थात् नित्य कार्य तथा नैमित्तिक कार्य करने में चित्त लगने से तिरोहित हुए सम्यग्दर्शनादिको मेसें किसी एकको पुनः उपायोंके प्रयोगसे संपूर्ण करना उसको साधन कहते हैं. निस्तरण—अन्यभबमें सम्यग्दर्शनादिकों को पोहोंचाना, अर्थात् आमरण निर्दोष पालन करना जिससे वे अपने साथ अन्य जन्ममें भी आसकेंगे. आराधना शब्द अनेकार्थमें रूढ होनेसे प्रकरणानुसार अविरुद्ध व्याख्या करनी चाहिये. अब यहां दूसरे विद्वान ऐसा कहते हैं निस्तरण शब्दका सामर्थ्य ऐसा अर्थ है तथा इस शब्दका उद्यो तन, उद्यवन इत्यादि शब्दोंके साथ संबंध करना चाहिये. तथा उद्योतनादिकोंका दर्शन, ज्ञान, चारित्र, तप इनके साथ यथाक्रम संबंध करना चाहिये. अर्थात् दर्शनका उद्योतके साथ, ज्ञानका उद्यवनके साथ, चारित्रका निर्वहणके 'साथ तथा तपका साधनके साथ संबंध करे. दर्शनोद्योत - पूर्वावस्थापेक्षा से भी मरणकालमें निर्विभतया सम्यग्दर्शन अधिक निर्मल करना यह दर्शनाराधना समझनी चाहिये. इत्यादिरूपसे अन्यविद्वान् व्याख्यान करते हैं, इस विवेaaपर आचार्य निम्न प्रकारसे विचार करते हैं. यहां आपको ज्ञानादिकोंको निर्मल करना इष्ट है या अनिष्ट है ? यदि इष्ट है तो दर्शनके साथ ही उद्योत नका क्यों संबंध जोडते है ? अर्थात् ज्ञानांदिकोंके साथ भी उद्योतका संबंध जोड़ देना चाहिये. उधवनका मी सर्वके साथ संबंध करना चाहिये. निर्वाई अर्थात् निराकुल धारण करना इसका भी दर्शनादिक, चारोंके साथ संबंध जाना अध्याय १ १७
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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