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________________ मूलाराधना ३३५ कार्यमें हम सहानुभूति रखते हैं अतः हमको इस सहानुभूतीका उपर्युक्त फल मिले ऐसी हम इच्छा रखते हैं. हे भगवान् ! हम यह विमान सज्ज करके लाये हैं. इसके उपर आप आरोहण करो. ऐसा बोलकर जब सौधर्मेन्द्र मौन धारण करता है तब संपूर्ण ज्ञातिवर्ग, अंतःपुर और परिवार के समस्त लोक हर्ष और विषादयुक्त हुये. उन सब लोगोंको हर्ष विपादयुक्त देखकर जिनेश्वर इस प्रकारसे बोलते हैं- हे जनहो ! चिरकालीन सहवाससे जो अल्प उपकार लोक अन्योन्यमें करते हैं उससे अन्योन्यमें अनुराग उत्पन्न होता है. तथा जहां अनुराग प्रेम उत्पन्न होता है वहां द्वेष भी उत्पन्न होता है. इस प्रेम और कोपसे अर्थात् रागद्वेषसे दुरंत कर्मबंधन होता है. इन सब आपत्तिओंका मूलकारण यह मेरा है, में इसका स्वामी हूँ ऐसा ममत्वभाव है. यह सर्व दुःखांका आधकारण हैं, विद्वान् पुरुषने इस ममस्वभावको फेक देना चाहिये. किसीका मित्र अथवा धन वा शरीर ये पदार्थ कायम टिकनेवाले नहीं हैं. सर्व बंधुगण, परिवार जन लड्ड उड़ाने में खूब सहायता करते हैं. धन कमाने में बड़ा दुःख होता है. यह धन धनेच्छु लोगोंके साथ बखेडा उत्पन्न कराता तीव्र लोभको बढाता है. जैसे खारा पानी पीने चालेको अधिक प्यास लगती है वैसे धन तृष्णा-लोभको उत्तरोत्तर अधिक रूपसे बढ़ाता है. aur मदिरा के समान अन्तःकरणको मोहित करती हैं. असत्य रोना, इसना और असत्य प्रार्थनाओंके द्वारा धैर्यरहित लोगों के मनको शीघ्र हरलेती हैं. स्त्रिया धर्मसे बनी हुई पुतलियां हैं. वे स्वभावसे चंचल होती है संध्याकालकी मेघपंक्ति जैसी अस्थिर रागभावसे युक्त हैं. संध्याकालके अनंतर विलनि होता है वैसे स्त्रियोंका प्रेम अल्पकालमें नष्ट होता है, वे दूसरेपर प्रेम करने लगती है. वे कपटकी मातायें हैं. असत्यभाषणरूप दृतीकी वे स्वामिनी है. और सुगतिकी प्राप्तिको बजार्गला के समान प्रतिबंध करनेवाली है. ऐसी स्त्रियोंमें बुद्धमान पुरुषोंको प्रेम करना क्या उचित है ? यह शरीर अनेक अपवित्र पदार्थोंका स्थान है. जैसे कूड़े कचरे में एक भी पवित्र पदार्थ नही रहता है वैसे शरीर में सब रक्त, मांस, मलमूत्रादिक अपवित्र ही पदार्थ मरे हुवे हैं, प्राणिओंको यह शरीर कभी नष्ट होनेवाले 'भारके समान है, अर्थात् जबतक इस जीवको मोक्ष प्राप्त न होगा तबतक इस शरीरका बोझा इसको हमेशा धारण करना पडेगा ही. यह शरीर महारोगरूपी सपके लिए बामीके समान है, जरारूपी व्याघ्रीका रहनेका यह स्थान भावार २ ३३५
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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