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मुलाराधना
আখা
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बैठे हैं उस दिशाक तरफ सात पाद परिमित भूमीतक चला जाता है. अपने मस्तकपर विकसित कमलदुलकी कांतिको हंसनेवाला, अंकुश, बजादिक शुभलक्षणास भनोहर दीखनेवाला, ऐस अपन दक्षिण हायसे किरीटके रत्नों से भूषित अपना मस्तक नीचे झुकाकर सद्धर्मतीर्थको चलानेमें उद्युक्त, शरणागत भव्यलोकोका रक्षण करनेवाले और अपूर्व ज्ञानरूपी नेत्रके धारक ऐसे जिनश्चरको मेरा नमस्कार हो ऐसा वचनोच्चार इंद्र करता है तब नगारेके ध्वनिसे सब देवोंको प्रभृके कार्यका ज्ञान होता है. सब एकत्र होते हैं. अपने अपने स्वामीके आगे वे देव प्रयाण करते हैं. नानाप्रकारके छत्र, शस्त्र, वस्त्र, अलंकारोंसे सज्ज होकर श्रेष्ठ देव सोधर्मेद्रके सन्निध जाते हैं. सर्व इंद्र और इतर राजा लोकोंके साथ इंद्र राजवाडे के पास जाता है. तब चामर, सिंहासन, श्वेतच्छत्रादि राजनिन्हाँको छोटकर दखाजेके पास खड़ा होता है. द्वारपालकी अंदर प्रवेश करनेकेलिये अनुज्ञा मिलनेपर धर्मचक्रसे मुशोभित एसे भगवान के पास जाकर उनको बहुमानसे प्रणाम करता है. जिनेश्वर प्रभु बड़ी प्रसन्नताम देखते हैं तब इंद्र इस प्रकार प्रभुको विज्ञापन करता है
हे भट्टारक! आपका दीक्षा कल्याणविधि करनेकेलिये अच्युतेन्द्र के साथ सब इंद्र आये हैं. हमको मुक्तिमार्ग का स्वरूप मालूम है. इंद्रिय मुख वदस्वरूप होनेसे उससे हम उदासीन है, ज्ञानात्मक अनंत सुखानुभव प्राप्त करनेके लिये हम उद्यत भी है परंतु संयमघाति कर्मका क्षयोपशम न होनेसे चारित्र धारण करनेमें स्वयं चारित्र में प्रवृत्ति नहीं करते हैं और अन्य भव्योंको भी प्रवृत्त नहीं करते हैं. यद्यपि हमको विशुद्ध ज्ञान और सम्यग्दर्शनकी प्राप्ति होगयी है तो भी निर्दोप चारित्र और तपके बिना हम संपूर्ण कमोंका नाश करने में असमर्थ है. हमारा आयुष्य अनेक सागरोंका होनेसे हम दर्घिसंसारी हैं. अतः हम को बहोत खेद होता है. ऊठकर खडे होनेकी अभिलाषा रखता हुआ भी बालक जैसे गिर पड़ता है जैसे चारित्र की अभिलाषा रखते हुये भी उसको हम धारण करनेमें असमर्थ हैं.
हे भगवन् ! आप ज्ञातव्य वस्तुयें सब जानचुके हैं. मोहनीय कर्मके क्षयोपशमसे आपमें त्यागरूप परिणाम उत्पन हुये हैं, आप हमारे लिये सर्वोत्कृष्ट पूज्य है. पूर्व जन्ममें संपूर्ण आरंभ और परिग्रहोंका त्याग करने से जैसी आपको अपूर्व वीतरागता और सर्व भव्य जीवोपर उपकार करनेकी शक्ति प्राप्त हुई है वैसी वीतरामता और उपकार शाक्ति हमको भी अन्य जन्ममि मिले ऐसी अभिलाषा रखते हैं. आपके दीक्षाकल्याणके
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