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मूलाराधना
आश्वासः
नपक्षिनकरणचटमत्यस्तसंशीतिक, दूर्गकृतयिषयांसं केवलमुत्पत्यते । तस्य फलस्य दर्शनाजिनप्रीत माग अपनीतशंकादिकलंगा श्रद्धोत्पद्यते । फलार्थी तवत्स रोचते दृष्टसामर्थ्य इति किं चित्रम?
देशांतरातियः साधोः कथं दर्शनशुद्धिः स्यादित्याशंका निराकरोति
__ मृला--जम्मण, जन्म अभिनय रहाणे, जरन्युवराजमणं वा यत्र क्षेत्रे जातं सदा जन्मशब्देनोच्यते गाचर्यान | उत्तरत्राप्ययमेव न्यायो योज्यः । अहिणिखमणे रत्नत्रयाभिमुख्यन गृहाइदिगान वा यरिभग क्षेत्र नत् ।
म त ति मिनभव्याः पापनाशाचिन इनितीर्थमिह समवसरणं । जम्मणणिकग्यमणेणाणोपत्तो तित्यचि सि कनपाठः । नत्र तीर्थस्य स गवसरणस्य चिन्हानि मानस्तंभा गृह्यन्ते । णिसिंधी योगबृत्तिस्यां भूमी सा निसिधीयुमयने ।
दर्शनशुद्धि गणका वर्णन करनेवाली गाथा
अर्थ-अनियत स्थानों में विहार करनेवाले मुनिओंके सम्यग्दर्शन में तीर्थकराके जन्मादि स्थानोंका दर्शन होनेसे निमलता प्राप्त होती हैं.
- जन्म--नबीन शरीर ग्रहण करना. जिस क्षेत्रमें जन्म होता है उसको भी साहचर्यसे जन्म कहते हैं. अथवा जिसने नबीन शरीर धारण किया है ऐसा आत्माभी जन्म शब्दसे वर्णित होता है. अथवा माताके उदरसे बाहर आनेकी क्रिया जिस स्थानपर हो वह स्थान भी जन्म शब्दसे गृहीत करना चाहिये. अर्थात् जिस क्षेत्रपर जिनेश्वरका जन्म हुआ है ऐसे क्षेत्रोंको जन्मक्षेत्र कहने हैं. अभिनिष्क्रमण-रत्नत्रयके अभिमुख होकर गृहका न्याग कर जिस स्थानपर तीर्थकर गमन करते हैं उस स्थानको अभिनिष्क्रमण कहत है.
ज्ञान--केवलज्ञानावरण कर्मके क्षयरे संपूर्ण पदाधोंका यथार्थ रूप जाननेवाला. कंवलज्ञान यहां ज्ञान शब्दका बाच्य है. सामान्य शब्दभी प्रकरणके अनुसार त्रिपार्थको जतलाते हैं. अतः यहां ज्ञानशब्दसे केवल ज्ञान समझना चाहिये. केवलज्ञानावरणीय कमक क्षयमे संपूर्ण पदार्थोंका यथार्थस्वरूप ग्रहण करनेवाला जो ज्ञान उत्पन्न होता है वहीं ज्ञान इस प्रकरणमें संगृहीत किया है, क्योंकि ज्ञान यह शब्द यद्यपि सामान्य है तो भी विअपम समझना चाहिये, यह केवलज्ञान जिस क्षेत्र में होता है उसको भी ज्ञानके साहायसे 'ज्ञानोत्पत्ति यह नाम है,
तीर्थ---चिन्ह. तीर्थ इस शब्दका अर्थ इस प्रकरण में समवसरण ऐसा होता है. पापका नाश करने की इच्छा बनवाले भव्य जीव समवसरण में जाकर समारोत्तीर्ण होते हैं अतः समवसरणको तीर्थ कहना योग्य ही है. अमुक
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