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________________ - - - - a n - . . . धूलाराधना आश्वासः जो समाधिमरणकेलिये योग्य है, जिसने मुक्तिके उपायभूत ऐसे लिंगको धारण किया है. जो शाखाध्ययन करनेमें तत्पर है। पांचों प्रकारका विनय करनेवाले, अपने मनको वश रखनेवाले ऐसे मुनिओके लिये ग्राम नगरादिक अनियत क्षेत्र में निवास करना योग्य है, अनियत क्षेत्रमें निवास करनेसे कोनसे गुणोंकी प्राप्ति होती है. ! ऐसी शंका होनपर समाधिको प्राप्त अर्थात् मनकी एकाग्रताको धारण किये हुए मुनीश्वरके अनियत विहारके गुण आगेकी गाथामें आचार्य दिखाते हैं. अर्थ- अनियत स्थानमें निवास करनेसे मुनिऑको जिन गुणोंकी प्राप्ति होती है उसका खुलासा-मुनिओं के सम्यग्दर्शनमें निर्मलता प्राप्त होती है. अर्थात् जिनागममें कहे हुए जीवादि सप्त तत्वॉपर निर्मल श्रद्धान उत्पन्न होता है. स्थितिकरण- मुनिओके रत्नत्रय परिणाममें स्थिरता आती है. वह किसीसे बाधित नहीं होता है. अनियत वाससे पुनः पुनः रत्नत्रयमें अभ्यास होता है-प्रवृत्ति होती है. जीवादिक पदाथोंके सूक्ष्म अर्थका प्रतिपादन करनम चतुरता आती है, अनियत वास करनेसे कोनसा क्षेत्र अर्थात् ग्रामनगरादि समाधिमरण करने के लिये योग्य है इसका भी ज्ञान होता है, अर्थात् दर्शनादि, स्थितिकरण, भावना, अतिशयार्थ कुशलता और क्षेत्रपरिमागणा इतने गुणोंकी प्राप्ति अनियत वासस होती है ।। १४३ ।। ---- ---- - दसणसुद्धी इत्येतत्पदन्याख्यानकारिणी गाथा जम्मणअभिणिक्खवणं णाणुप्पत्ती य तित्थणिसहीओ ॥ पासंतस्स जिणाणं सुविसुध्दं दसणं होदि ॥ १४३ ॥ विशुद्ध दर्शनं साधोर्जायते पश्यतोऽहताम् ॥ जन्मनिष्क्रमणज्ञानतीर्थचिहनिषिद्धिकाः ॥ १४६॥ विजयोदया-जम्मण जन्माभिनवशरीर ग्रहणं तस्मिन्प्रेष जातं तदिह साहचर्याजन्मशब्देनोच्यते । गृहीतशरीरस्य वात्मनो जन्म, जनयुदराात्र निष्क्रमणे जातं तद्वा । थभिणिक्यबणे रत्नत्रयाभिमुरण्येन गृहाइलिममनं यस्मिन्क्षेत्रे तविह निफमाण । णाणुप्पत्ती य केयलशानायरणक्षयात् सार्थयाथात्म्यग्रहणक्षम यकवलं तदिह शानमिति गृहीतं । सामान्यशदानामपि विशेषवृतिः प्रतीतैव । तस्य शानस्योत्पत्तिर्यस्मिन् क्षेत्र तदिह साइ. चर्यात् णाणुप्यत्ती य शब्देनोच्यते । तित्थं चिण्ई । तीर्थमिह समवसरणं गृह्यते । तरंति तस्मिन्भन्याः पापवि. ३२५
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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