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. मूलाराधना
आश्वासः
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हाय ' मैंने मनमें दुष्ट विचार किये हैं। ऐसा बोलकर जो अपनी निंदा और गर्दा करता है उसको श्रामण्यसिद्धि होती है. जो मनको लज्जित करता है उसको भी श्रामण्यलाभ होता है " हे मन अकल्याण करनेवाले संसारको, उसको बहानेमें कारणभूत रागद्वेषादि परिणामाको, मुक्ति और उसके उपायोंको तूं जानता है. अद्धान करता है, अश्रद्धानादि परिणामोंका नाश करने के लिय ही तूने निग्रंथ लिंग धारण किया है इसलिये उलटे विचार रखना क्या तरेको योग्य दीखता है' इस विधि से जो मनको लज्जित करता है उसको समताकी प्राप्ति होती है.
दास व मणं अवसं सघसं जो कुणदि तस्स सामण्णं ॥ होदि समाहिदमविसोत्तियं च जिणसासणाणुगदं ॥ १४१ ॥
अवशं क्रियते वश्यं येन दास इव चतम् ।। श्रामण्यं निश्चलं तस्य सर्वदाप्यवतिष्ठते ॥ १४४ ॥
इति समाधिसूत्रम्। विजयोदया-अवसं दासं व मणं सबसं जो कुणदि इनि पदसंबंधः । दास व चेटीपुर्व अवशतिनं पधा कश्चिदलास्ववदा करीन्यवमधीन जिनवचन आत्मनो मनी निरयनहतया प्रवृत्तं अशुभपरिणामयसरे यदि नाम नथापि - यलात्तशिस्याभिमताभभावपरंपरानुक्कलतया यः स्थापयति जैनमतामृतास्वादकारितत्सामातिधान्यस्तस्य सामाणं समानता होदि भवति । समाहिद एकमुखे । अविसोत्तिगं दुरापस्तविश्वरूपाशुभपरिणामप्रवाई । जिणसासणाणुगदं संपारितद्रव्यभावकर्मकरपराभवानां यच्छासनं-शिष्यंत जीवादयः पदार्था अनेनास्सिन्चेति शासनं बागमस्तेगानुगतम् ।
मूलारा--समाहिद एकमुखं शुद्धस्वचिद्रुषमात्रालम्बनमित्यर्थः । अविसोत्तिगं निवृत्तपापानवपरिणाम ।। समाधिः । सूत्रतः ५। अंकतः । १० ॥
अर्थ--जसे कोई समर्थ मनुष्य उन्मत्त नोकरको बलात्कारस अपने आधीन रखता है जैसे जिनागमका जिसने अभ्यास किया है ऐसा यति भी स्वच्छंदी होकर अशुभपरिणामोंक प्रबाहमें पडे हुए पनकी निंदा, निर्भत्सना कर बलात्कारसे अपने वश रखता है. इष्ट ऐसे शुभ परिणामोंमें उसको स्थिर करता है. यतिको जनमतामृतका आस्वादन करनेसे ही मनको वश करनेका विशिष्ट सामर्थ्य प्राप्त होता है. इसकी प्राप्ति होनेसे समानताका लाभ भ्रनिको