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________________ मूलाराना आश्वास अर्थ-जिस मुनिका चित्त चंचल है उसका चारित्र चालिन में डाला हुआ पानी उसमेसें जैसे निकल जाता है रहता नहीं बसे नष्ट होता है. यद्यपि यह साधु शरीरसे और वचनस शास्त्रोक्त चारित्र पालन करना है. शरीर और वचनस चारित्र पाले तो भी यदि साधूका चित्त स्थिर नहीं हो तो वह नष्ट होता ही है. अतः चित्तकी चंचलता नष्ट कर उसमें स्थैर्य लानेका साधुओका प्रयत्न करना चाहिये. ३१४ मनमो दुपतां प्रपंचेनोपदिश्य तदेवंभूत मनो यो निगृहाति तस्य श्रामण्यं भवति समानमायो नतरस्वत्यतउत्तरप्रयंधनोच्यते तदौरात्म्यमकाशनार्थ गाधापंचकम् बादुन्भामो ३ मणो परिधावइ आहिदं तह समंता ॥ सिग्धं च जाइ दूरपि मणो परमाणुदव्व वा ॥ १३४ ।। परितो टाव्यते [ धावते ] चेतश्चरण्युरिव चंचलम् ।। परमाणुरिच क्षिप्र दूरं यात्यनिवारितम् ।। १३७ ।। विजयोदया-वादुम्मामो इत्यादिकं । पाहुप्मामो व बाल्येष। मणो मनः। परिधावद | धावति परिरनर्थकः। प्रलंबित इति यथा । अछिदं ति क्रियाविशेषणं अस्थितं धावति । कचिद्विषयेऽनयस्थितिराण्याता मनसः । तह समंता तथा समंतात् । तर पि दूरमपि । सिग्वं च जाइ शीघं याति । मणो मनः । परमाणुवष्वं वा परमः प्रष्टो अणुः सूक्ष्मः परमाणुः स एव व्यं गुणपर्यायगमनात् तविय 1 पतेन झटिति दूरस्थितविषयमाणं तस्स दौरात्म्यमावेदितं । क्रमशोऽनवस्थितत्वादितिदूर स्थित विषयमाहित्वात्मस्वामिचिकीर्षिताप्रवर्तनाशनाशिववस्तुसदसदूपनिराकरणमाइणप्रवृत्यप्रति निवर्तनीयत्वमार्गप्रवृत्तवातिदुर्भहत्यदुरंतदुःखप्रदचेष्टत्वसंसारकारणदोषकारिजीवितव्यत्वलक्षणं नवधा मनसो दौष्ठ्यं गाथापंचकेन व्याचष्टे मूलारा-वादुम्भामोव वातावलीय यातामलीतुल्यं । अदि कचिदपि विषये अनव स्थितं यथा भवति । परमाणुदव्यय मनसो झदितिदूर स्थितविषयप्रणलक्षणदौरात्म्योपलक्षणार्थमिदं भवति । आगे पांच गाथाओंसे मनकी दुष्टता आचार्य दिराते है. दुष्ट मनका जो निग्रह करते हैं. उनका चारित्र निर्दोष पला जाता है. अन्य साधुका चारित्र निदोष नहीं पल सकता यह विषय विस्तारसे आचार्य दिखाते हैं - अर्थ--बड़े जोरसे बहने वाली वायु किसी भी स्थान में स्थिर नहीं रहती है. चारो तरफ दौडती है. मन भी किसी भी विषय में स्थिर नहीं होता है. गुणपर्यायांसे युक्त परमाणुद्रव्य जैसा एक समयमें बहुत दूर जाता है
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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