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________________ ARCHR अध्याय राधना व्यर्थता नष्ट होती है. उसी तरह 'जगत्प्रसिद्ध ' इस अईन्त के विशेषणका प्रसिद्धतम पेसा अर्थ समझना चाहिए इस विशेषणसे अइत्परमेष्टीकी ही अधिवाना परिद मूभिर गई है. जबतक श्रोताको प्रयोजनका ज्ञान होता नहीं तबतक वह शास्त्र अत्रण करने में अथवा उसका अध्ययन करनेमें प्रयत्न नहीं करेगा इस वास्ते परोपकार करने के लिए उयुक्त हुवा मैं यह शास्त्र रच रहा हूं. अत: म शास्त्र रचनेका प्रयोजन प्रगट करता हूं ऐसा आशय मनमें धारण करनेवाले आचार्य' बोई आराहणमिति' इस वाक्यसे प्रयोजन कहते है. आराधनाके स्वरूपका ज्ञान होना यह प्रयोजन है तथा यह प्रयोजन श्रोताको इस शास्त्रक सुननेसे प्राप्त होगा ऐसा अभिमाय ' वोच्छ आराहणं' इस वाक्य से झलकता है। शंका--आराधनाको स्वरूपरि ज्ञान होना यह पुरुषार्थ नहीं है. पुरुषार्थको प्रयोजन कहते हैं । सुख अथवा दुःख निवृशिको पुरुषार्थ कहते हैं। आराधनाका स्वरूप ज्ञान होना यह सुखरूप अथवा दुःखकी निवृत्ति एतप नहीं है अतः स्वरूपारगमन प्रयोजन नहीं है. इसका खुलासा हम इस तरह करते हैं जो जिस प्रयोजनको चाहता है वह उसको प्राप्त करनेके लिए उसके उपाय जानने का प्रपत्र करता है। अथवा माप्य वस्तु मिलानेका प्रयत्न करता है । जिसके द्वारा प्रयुक्त होकर कार्यमें मनुश्य प्रवृत्त होता है उसको प्रयोजन कहते हैं। आत्मा ज्ञानके द्वारा शास्त्रश्रवणादि किया प्रवृत्त होता है अव उपयोगिरस्तुका शान होना यह प्रयोजन कह सकते है। शंका-परन्तु आराधना तो कुछ उपयोगिनी नहीं है अतः उसका ज्ञान कर लेना आवश्यक नहीं है । उत्तर--यह आराधना अनंत सुखरूप केवलशान व परम अध्यावाधवा इन गुणोंको उत्पन्न करती है अत: यह आराधना अवश्य उपयोगी है. अतएर सिध्द और अरहंत ये महापुरुष चार प्रकार के आराधनाओका फल प्राप्त कर चुके हैं ऐसा आचार्य कहते हैं, अनंत शानादिफल देनेवाली आराधनाका स्वरूप भब्धोंको ज्ञात हो जाय इस हेतूसे प्रेरित होकर आचार्य इस शास्त्र की रचना करते हैं. यह शव आराधना स्वरूपका शान उत्पन्न करता है अतः यह साधन है तथा आराधनाशान साध्य है. साख और प्रयोजन इन दोनों में साध्यसाधन संबंध है या भी 'चतुर्विधाराधनाफलं प्राप्तान' इस वाक्यसे स्पष्ट हो जाता है. यह शास्त्र चार आराधनाओंका वर्णन करता है अतः इसको अभिधायक-प्रतिपादक कहते हैं. सम्यग्दर्शनादि आराधना इस शास्त्र में वर्ण्य-अभिधेय हैं अतः इन earlese - SHAH - S
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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