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________________ मूलाराधना आधार RSHADBTSIC पद्धति है-थोडा गुरुके नजदीक खडे होकर उनके पीछीसे उनका शरीर तीनवार पोंछना चाहिये. आगंतुक जीयाको बाधा न होगी इस रीतीसे, उन जीवोंको इटाना चाहिये. और बडे आदरसे गुरु जितना मर्दन सह मान्न उतना ही धीमईन करना चाहिये. यदि उष्णतासे गुरु पीडित हो तो उनकी उष्णतापीडा दर होकर जैसे उनको शांतिलाम होगा वैसे अंगमर्दन करना चाहिये. शीतपीडित गुरुके अवयवांमें उप्णता उत्पत्र होनेतक उनका शरीरमर्दन करना चाहिये. बालपना, बृद्भपना वगैरह अवस्था देह में कालके द्वारा होती है, उस उस अवस्था के योग्य बैंगावृत्य करके दुःखपरिहार करना चाहिये. गुरुओंने जो आज्ञा की होगी वह सफल करना चाहिये. गुरुओंको सोनके लिये तणका बिछाना करदेना, लकडीका फलक सानेके लिये रखना, चटाई विछाना यह कर्तच्यभी कायिक विनयमें अन्तर्भून है. गुर्चादिकांके ज्ञानके उपकरण शास्त्र, संयमके उपकरण पिछी, कमंडल्यार्दिककी सूर्यास्त समय और सूर्योदय के समय स्वच्छता करनी चाहिये. -- -- ...... - इच्चेवमादिविणओ उबयारो कीरदे सरीरेण । एसो काइयविणओ जहारिहो साहबग्गम्मि ।। १२२ ॥ व्यापारः क्रियते नित्यं यः कायेनैवमादिकः ।। कायिको बिनयोश्याचि साधूनां स यथोचितः ।। १२३ ॥ विजयोदया-उपचारिकविनयः। शेष सुगम। मूलारा--जहारिहो यथोचितः। अर्थ-गुरुजनोंमे योग्यताके अनुसार इत्यादि प्रकारका विनय शरीरके द्वारा करना चाहिये, यह सब कायिक उपचारविनयका विस्तार दिखाया है, १२३ बाचिकविनयनिरूपणार्थ गाथावयम् पूयावयणं हिदभासणं च मिदभासणं च महुरं च ॥ सुत्ताणुवीचिचयणं अणिडुरमकक्कसं बयणं ॥ १२३ ॥
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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