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________________ मूलाराधना आश्वासर २९३ कायोत्सर्गका जघन्यकाल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल एक वर्षका है. रात्रिकायोत्सर्ग, दिनकायोत्सर्ग, पक्ष, मास, चारमास, संवत्सर ऐसे कायोत्सर्गक बहुत भेद हैं. अतिचार नष्ट होनेके लिये ये कायोत्सर्ग किय जाते हैं. रावि, दिवस, पंधरादिन, महिना, चारमहिने, वर्ष इत्यादि समयमें जो व्रतमें अतिचार लगते हैं उनको दूर करनेके लिये ये कायोत्सर्ग किये जाते हैं. सायंकालमें सो उच्छ्वास और प्रातःकाल में पचास उच्छ्याम किये जाते हैं, एक पक्षमें नीनसो वासोच्छ्वास,चारिमहिनेमें चारमो और वर्ष ५.८ पांचसो कायोत्सर्गका काल कहा है. प्राणिहिंसादि पांच प्रकारके अतिचारों से जो कोई अतिचार होगा तब एकसो आठ उच्छ्वास करने चाहिये. कायोत्सर्ग करनेपर यदि श्वासोत्तमाल करते सगर इनकी यदि लाभाबमें ही है अथवा परिणामोंमें स्खलन हुवा हो तो आठ उच्छ्वास काल तक अधिक कायोत्सर्ग करना चाहिये. कायोत्सर्गके १ उत्थितोस्थित, २ उत्थितानिविष्ट, ३ उपविष्टोस्थित ४ और उपविष्टोपविष्ट ऐसे चार भेद कहे हैं. १ धर्मध्यान अथवा शुक्लध्यानमें परिणत होकर जो खडे होकर कायोत्सर्ग करते हैं उनका वह उत्थितीस्थित कायोत्सर्ग हैं. शरीर और आत्माके परिणाम दोनो भी उन्नत है यहां उनका उन्नतिप्रकप दिखानेके लिये 'उत्थितोत्थित शब्दका प्रयोग किया है. उसमें शरीर खंके समान स्थिर खडा हुआ है यह द्रव्योत्थान कहा जाता है. तथा ज्ञान स्थिर होकर ध्येय वस्तुमें एकाग्र होता है उसको भात्रोन्थान कहते हैं. आर्तध्यान और रोद्रध्यान में परिणत होकर जो खटा होता है उसके कार्यन्मर्गको उस्थितनिषण्या कायोत्यग कहने हैं, शरीरये वह बटा है अनः उसको उस्थित कहने है. परंतु शुभपरिणामरूप उन्धानका अभाव होनस निषणा कहत है. उत्थितावस्थाका और आसनावस्थाका भिन्न भिन्न कारण होनेसे यहां उन्थिन और उपविष्ट में विरोध नहीं है. जो मुनि बैठकर ही धर्म और शुक्लध्यानमें लवलीन होता है उसका उपविष्टोत्थित कायोत्सर्ग है. परिणाम उसके उन्नतशील है परंतु शरीरमे वह उठकर खड़ा नहीं हुआ है. जो मुनि बैठा हुवा है और अगमध्यान कर रहा है वह निपणनिषणा कार्यात्मर्गयुक्त समझना चाहिये. वह शरीरसे धैठा हुवा है और परिणामोंसे भी उत्थानशील नहीं है.
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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