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SATTA
आश्वास
मूलाराधना
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हैं. परंतु गृहस्थ स्थूलाईसादि पापोंका नउ प्रकारों से त्याग करनेमें असमर्थ रहते हैं. क्यों कि वे गृहकार्योंसे विरक्त नहीं रहते हैं.
मन और वचनके द्वारा स्थूल हिसादिक पापोंको कृत, कारित, अनुमतीके विकल्पोंसे नहीं करता है. परंतु शरीरके द्वारा हिंसादिक पापोंका कृतकारितानुमति विकल्पपूर्वक त्याग करने में असमर्थ होता है, अर्थात् मनके द्वारा में स्थूल पातक नहीं करूंगा, नहीं कराउंगा और अनुमति नहीं देउंगा. तथा वचनके द्वारा भी स्थूल पातक नहीं करूंगा, नहीं कराउंगा और अनुमति नहीं देउंगा इस प्रकार हिंसादिकका व्याग कर सकता है. इस विषयमें ऐमा सूत्र है--'ण खु तिविधं तिविधेण य दुविधकविधण वापि विरमेज्ज 'इति.
गृहस्थ किस प्रकारले विरक्त होता है ? इस प्रश्नका उत्तर आचार्य लिखते हैं-कृत और कास्तिविकल्पसे मन वचनकायक द्वारा ये हिंसादिक त्यागते है. अथवा शरीर के द्वारा और गाणीक द्वारा रियादिविषयक कृतकारितका त्याग करते हैं. इसीलिये इस विषय में पूर्वाचान्यांन आनका मत्र कहा है-'गिधं पुण लिविशेष दुविधेविषेण वापि विरमेन्ज' : .. . .
अथवा मनयरन और शरीरके द्वारा धूलाहमादिक पाप फल स्वयं में नहीं मांगा ऐसा संकल्पपूर्वक प्रत ग्रहण करता है. किंवा वचन और शरीरके द्वारा ही पांच पापोंको स्वयं नहीं करता है अथवा केवल शरीरसे ही स्वयं हिंसादिकोंका कृतरूपसे त्याग करता है. अर्थात मैं सरीरके द्वारा ही पांच पातक नहीं करूंगा. ऐसा व्रत लेता है. इस विपयका सूत्र ऐसा है—एकविधं विविधणापि विरमेज्ज'
इस रीतीसे जो व्रतोंके विकल्प होते हैं इनको भविष्यत्कालका विषय करनेसे प्रत्याख्यानके विकल्प उपजत है. जैसे-मैं मन, वचन और शरीरके द्वारा कृत, कारित और अनुमोदनोंसे आगेके कालमें हिंसादिकोंका त्याग करूंगा इत्यादि.
कायोत्सर्गका निरूपण करते है
कायोत्सर्ग काय शब्दका अर्थ शरीर होता है. और उत्सर्ग शब्दका अर्थ त्याग होता है, अर्थात् शरीरका त्याग करना यह कायोत्सर्ग शब्दका समग्न अर्ध हुआ. पदार्थाको जाननेशले ज्ञानको आधारभूत इंद्रियरूपी अत्रयबास जिसकी रचना हुई है ऐसा कर्मनिर्मित औदारिक नामका जो विशिष्ट पुद्गलसमुदाय वह यहां